दलित आंदोलन से सकपकाई, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है. लेकिन लगता है सरकार देर से हरकत में आई. तब तक आंदोलन जोर पकड़ चुका था. वैसे भी सुप्रीम कोर्ट ने खबरों के मुताबिक इस मामले में फौरन सुनवाई से मना कर दिया है. केंद्र ने ये सफाई भी दी है कि दलितों और अल्पसंख्यकों के आरक्षण के प्रावधान को हटाने का उसका कोई इरादा नहीं है. इस बीच उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में बंद के दौरान हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ हुई. धारा 144, कर्फ्यू और इंटरनेट सेवाओं पर रोक की नौबत आ गई. चार लोगों के मारे जाने और दर्जनों के घायल होने की खबरें भी मीडिया में आई हैं. पंजाब, ओडीशा, दिल्ली, बिहार और झारखंड को आने जाने वाली कई ट्रेनें रोकी गईं. दलित संगठनों के इस आंदोलन की तपिश ने सत्ता राजनीति के हाथ पांव फुला दिए हैं. ये सरकारी मशीनरी को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि ये आंदोलन इतनी तेजी और सघनता से फैल सकता है. प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों लगता है पूरी तरह मुस्तैद नहीं थे.
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अपने एक फैसले में कहा था कि एससी-एसटी अधिनियम के तहत पब्लिक सर्वेंट की गिरफ्तारी, एपॉयंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती है. आम लोगों को भी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की मंजूरी के बाद ही इस मामले में गिरफ्तार किया जा सकता है. इस कानून के तहत इसका उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को शिकायत के आधार पर तुरंत गिरफ्तार कर लिये जाने का प्रावधान था. दलित समुदाय इस फैसले से आहत है. उसके मुताबिक ये एक तरह से कानून को लचीला बनाने की कोशिश थी और उसे डर है कि दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ेगी और उन्हें जैसे मर्जी धमकाया जाएगा. मानवाधिकार संगठनों और कई गैर बीजेपी दलों ने भी इस फैसले की आलोचना की थी और सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए थे. खुद बीजेपी के भीतर से दलित नेताओ ने फैसले के खिलाफ एक सुर में आपत्ति जताई थी. जाहिर है ये उनका वोट की राजनीति का भी डर था.
कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज़) एक्ट को लेकर कहा था कि इन मामलों में तुरंत गिरफ़्तारी नहीं होनी चाहिए और शुरुआती जाँच के बाद ही कार्रवाई होनी चाहिए.
दलित संगठन कोर्ट के इस फ़ैसले से नाराज़ हैं और उन्होंने इसके ख़िलाफ़ भारत बंद का आह्वान किया था.
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के विरोध में सोमवार को कई दलित संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया.
भारत बंद को कई राजनीतिक दलों और कई संगठनों ने समर्थन भी दिया है. संगठनों की मांग है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में संशोधन को वापस लेकर एक्ट को पहले की तरह लागू किया जाए.
एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के विरोध में भारत के कई हिस्सों में भारत बंद के दौरान दलितों ने प्रदर्शन किया और इस दौरान कई राज्यों में हिंसा भी हुई.
बता दें कि लुधियाना में दलितों की अच्छी आबादी है और इसी वजह से प्रशासन सचेत है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी (प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज) एक्ट-1989 में बदलाव करते हुए गैर जमानतीय धाराओं को कमजोर कर दिया है। अब कोर्ट की जगह आरोपी को थाने से भी जमानत मिल सकती है। इस बदलाव के खिलाफ देशभर के दलित संगठनों ने सरकार से सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का अनुरोध किया था। दलित संगठनों की अगुवा संस्था नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित आदिवासी ऑर्गनाइजेशन के अशोक भारती ने आज (01 अप्रैल को) संसद घेराव का कार्यक्रम भी रखा था। इस बीच केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने आंदोलनकारियों से आंदोलन वापस लेने की अपील की थी। दलित संगठनों की मांग है कि संशोधन को वापस लेकर पहले की ही तरह एससी-एसटी कानून को लागू किया जाय।
एससी-एसटी एक्ट पर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह जल्द ही इस मसले पर सुनवाई करेगा। वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा है कि दलित आंदोलन और भारत बंद के चलते देश में हालात बहुत कठिन है। इस संवेदनशील मुद्दे पर जल्द सुनवाई होनी चाहिए
SC/ ST के खिलाफ अपराध लगातार जारी है आंकडें बताते हैं कि कानून के लागू करने में कमजोरी है न कि इसका दुरुपयोग हो रहा है। बता दें कि जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने एक मामले की सुनवाई के दौरान अग्रिम जमानत का आदेश दिया था।
केंद्र ने अपनी पुनर्विचार याचिका में यह भी कहा है कि अगर अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार के तहत आरोपी के अधिकारों को सुरक्षित करना महत्वपूर्ण है तो SC/ ST समुदाय के लोगों को भी संविधान के अनुच्छेद 21 और छूआछात प्रथा के खिलाफ अनुच्छेद 17 के तहत सरंक्षण जरूरी है।
अगर आरोपी को अग्रिम जमानत दी गई तो वो पीडित को आतंकित करेगा और जांच को रोकेगा.
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट शाहिद अली ने सोशल मीडिया के जरिए सभी बहुजनों से अपील किया हैं कि 2 अप्रैल के भारत बंदी में जिसे भी पुलिस ने झूठे मुकदमे में फसाया गया हैं. उसकी पैरवी यूनाइटेड मुस्लिम्स फ्रंट के अधिवक्ता मुफ्त में करेंगे.
एडवोकेट शाहिद अली ने अपने फेसबुक पर लिखा है कि SC/ST/OBC समाज के सभी भाई और बहनों, जिनका भी भारत बंद के दौरान झुठे मुकदमों में नाम आया हैं,उन सभी का केस यूनाइटेड मुस्लिम्स फ्रंट के अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करेंगे और वो भी निःशुल्क!!!
एडवोकेट शाहिद अली का इस तरह का फैसला पहला नहीं हैं, इससे पहले भी उन्होंने बहुत सारे गरीब जरुरतमंदों की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी मुफ्त में की है.
सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अपने एक फैसले में कहा था कि एससी-एसटी अधिनियम के तहत पब्लिक सर्वेंट की गिरफ्तारी, एपॉयंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती है. आम लोगों को भी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की मंजूरी के बाद ही इस मामले में गिरफ्तार किया जा सकता है. इस कानून के तहत इसका उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को शिकायत के आधार पर तुरंत गिरफ्तार कर लिये जाने का प्रावधान था. दलित समुदाय इस फैसले से आहत है. उसके मुताबिक ये एक तरह से कानून को लचीला बनाने की कोशिश थी और उसे डर है कि दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ेगी और उन्हें जैसे मर्जी धमकाया जाएगा. मानवाधिकार संगठनों और कई गैर बीजेपी दलों ने भी इस फैसले की आलोचना की थी और सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए थे. खुद बीजेपी के भीतर से दलित नेताओ ने फैसले के खिलाफ एक सुर में आपत्ति जताई थी. जाहिर है ये उनका वोट की राजनीति का भी डर था.
कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी (प्रिवेंशन ऑफ़ एट्रोसिटीज़) एक्ट को लेकर कहा था कि इन मामलों में तुरंत गिरफ़्तारी नहीं होनी चाहिए और शुरुआती जाँच के बाद ही कार्रवाई होनी चाहिए.
दलित संगठन कोर्ट के इस फ़ैसले से नाराज़ हैं और उन्होंने इसके ख़िलाफ़ भारत बंद का आह्वान किया था.
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के विरोध में सोमवार को कई दलित संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया.
भारत बंद को कई राजनीतिक दलों और कई संगठनों ने समर्थन भी दिया है. संगठनों की मांग है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में संशोधन को वापस लेकर एक्ट को पहले की तरह लागू किया जाए.
एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के विरोध में भारत के कई हिस्सों में भारत बंद के दौरान दलितों ने प्रदर्शन किया और इस दौरान कई राज्यों में हिंसा भी हुई.
बता दें कि लुधियाना में दलितों की अच्छी आबादी है और इसी वजह से प्रशासन सचेत है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी (प्रिवेंशन ऑफ एट्रोसिटीज) एक्ट-1989 में बदलाव करते हुए गैर जमानतीय धाराओं को कमजोर कर दिया है। अब कोर्ट की जगह आरोपी को थाने से भी जमानत मिल सकती है। इस बदलाव के खिलाफ देशभर के दलित संगठनों ने सरकार से सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का अनुरोध किया था। दलित संगठनों की अगुवा संस्था नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ दलित आदिवासी ऑर्गनाइजेशन के अशोक भारती ने आज (01 अप्रैल को) संसद घेराव का कार्यक्रम भी रखा था। इस बीच केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने आंदोलनकारियों से आंदोलन वापस लेने की अपील की थी। दलित संगठनों की मांग है कि संशोधन को वापस लेकर पहले की ही तरह एससी-एसटी कानून को लागू किया जाय।
एससी-एसटी एक्ट पर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह जल्द ही इस मसले पर सुनवाई करेगा। वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा है कि दलित आंदोलन और भारत बंद के चलते देश में हालात बहुत कठिन है। इस संवेदनशील मुद्दे पर जल्द सुनवाई होनी चाहिए
SC/ ST के खिलाफ अपराध लगातार जारी है आंकडें बताते हैं कि कानून के लागू करने में कमजोरी है न कि इसका दुरुपयोग हो रहा है। बता दें कि जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने एक मामले की सुनवाई के दौरान अग्रिम जमानत का आदेश दिया था।
अगर आरोपी को अग्रिम जमानत दी गई तो वो पीडित को आतंकित करेगा और जांच को रोकेगा.
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट शाहिद अली ने सोशल मीडिया के जरिए सभी बहुजनों से अपील किया हैं कि 2 अप्रैल के भारत बंदी में जिसे भी पुलिस ने झूठे मुकदमे में फसाया गया हैं. उसकी पैरवी यूनाइटेड मुस्लिम्स फ्रंट के अधिवक्ता मुफ्त में करेंगे.
एडवोकेट शाहिद अली ने अपने फेसबुक पर लिखा है कि SC/ST/OBC समाज के सभी भाई और बहनों, जिनका भी भारत बंद के दौरान झुठे मुकदमों में नाम आया हैं,उन सभी का केस यूनाइटेड मुस्लिम्स फ्रंट के अधिवक्ता सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करेंगे और वो भी निःशुल्क!!!
एडवोकेट शाहिद अली का इस तरह का फैसला पहला नहीं हैं, इससे पहले भी उन्होंने बहुत सारे गरीब जरुरतमंदों की सुप्रीम कोर्ट में पैरवी मुफ्त में की है.
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