भारत के संविधान निर्माता, चिंतक, समाज सुधारक बाबा साहेब अंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के मऊ में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था. उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था. वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे.
जानिए बाबा साहेब अंबेडकर की खास 10बातें
1. बाबा साहेब अंबेडकर का परिवार महार जाति से संबंध रखता था, जिसे अछूत माना जाता था. बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव देखने वाले अंबेडकर ने विषम परिस्थितियों में पढ़ाई शुरू की.
2. बाल विवाह प्रचलित होने के कारण 1906 में उनकी शादी नौ साल की लड़की रमाबाई से हुई.
3. 1908 में उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया. इस कॉलेज में प्रवेश लेने वाले वे पहले दलित जाति के बच्चे थे.
4. 1913 में एमए करने के लिए वे अमेरिका चले गए. अमेरिका में पढ़ाई करना बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से मासिक वजीफा मिलने के कारण संभव हो सका था.
5. 1921 में लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स से उन्हें एमए की डिग्री मिली.
6. 1925 में बाबा साहेब को बॉम्बे प्रेसिडेंसी समिति ने साइमन आयोग में काम करने के लिए नियुक्त किया. इस आयोग का विरोध पूरे भारत में किया गया था.
7. अंबेडकर दलितों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए 'बहिष्कृत भारत', 'मूक नायक', 'जनता' नाम के पाक्षिक और साप्ताहिक पत्र निकालने शुरू किये.
8. भारत की आजादी के बाद उन्हें कानून मंत्री बनाया गया. 29 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र भारत के संविधान रचना के लिए संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया.
मनुस्मृति का इतिहास
9. 1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल मसौदे को रोके जाने के बाद अंबेडकर ने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया. इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की बात कही गई थी.
10. 14 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर और उनके समर्थकों ने पंचशील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म ग्रहण किया. अंबेडकर का मानना था कि हिंदू धर्म के अंदर दलितों को कभी भी उनका अधिकार नहीं मिल सकता है. 6 दिसंबर, 1956 को अंबेडकर की मृत्यु हो गई.
जानिए बाबा साहेब अंबेडकर की खास 10बातें
1. बाबा साहेब अंबेडकर का परिवार महार जाति से संबंध रखता था, जिसे अछूत माना जाता था. बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव देखने वाले अंबेडकर ने विषम परिस्थितियों में पढ़ाई शुरू की.
2. बाल विवाह प्रचलित होने के कारण 1906 में उनकी शादी नौ साल की लड़की रमाबाई से हुई.
3. 1908 में उन्होंने एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया. इस कॉलेज में प्रवेश लेने वाले वे पहले दलित जाति के बच्चे थे.
4. 1913 में एमए करने के लिए वे अमेरिका चले गए. अमेरिका में पढ़ाई करना बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से मासिक वजीफा मिलने के कारण संभव हो सका था.
5. 1921 में लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स से उन्हें एमए की डिग्री मिली.
6. 1925 में बाबा साहेब को बॉम्बे प्रेसिडेंसी समिति ने साइमन आयोग में काम करने के लिए नियुक्त किया. इस आयोग का विरोध पूरे भारत में किया गया था.
7. अंबेडकर दलितों पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए 'बहिष्कृत भारत', 'मूक नायक', 'जनता' नाम के पाक्षिक और साप्ताहिक पत्र निकालने शुरू किये.
8. भारत की आजादी के बाद उन्हें कानून मंत्री बनाया गया. 29 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र भारत के संविधान रचना के लिए संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया.
मनुस्मृति का इतिहास
9. 1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल मसौदे को रोके जाने के बाद अंबेडकर ने मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया. इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की बात कही गई थी.
10. 14 अक्टूबर 1956 को अंबेडकर और उनके समर्थकों ने पंचशील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म ग्रहण किया. अंबेडकर का मानना था कि हिंदू धर्म के अंदर दलितों को कभी भी उनका अधिकार नहीं मिल सकता है. 6 दिसंबर, 1956 को अंबेडकर की मृत्यु हो गई.
भारत के लोगों के लिये डॉ भीमराव अंबेडकर का जन्म दिवस और उनके योगदान को याद करने के लिये 14 अप्रैल को एक उत्सव से कहीं ज्यादा उत्साह के साथ लोगों के द्वारा अंबेडकर जयंती को मनाया जाता है। उनके स्मरणों को श्रद्धांजलि देने के लिये वर्ष 2018 में ये उनका 127 वाँ जन्मदिवस उत्सव होगा। ये भारत के लोगों के लिये एक बड़ा क्षण था जब वर्ष 1891 में उनका जन्म हुआ था।
इस दिन को पूरे भारत वर्ष में सार्वजनिक अवकाश के रुप में घोषित किया गया। नयी दिल्ली, संसद में उनकी मूर्ति पर हर वर्ष भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री (दूसरे राजनैतिक पार्टियों के नेताओं सहित) द्वारा सदा की तरह एक सम्माननीय श्रद्धांजलि दिया गया। अपने घर में उनकी मूर्ति रखने के द्वारा भारतीय लोग एक भगवान की तरह उनकी पूजा करते हैं। इस दिन उनकी मूर्ति को सामने रख लोग परेड करते हैं, वो लोग ढोल बजाकर नृत्य का भी आनन्द लेते हैं।
अंबेडकर के द्वारा कहा गया कथन
“प्रगति की मात्रा के द्वारा ही एक समुदाय की प्रगति को मैं मापता हूँ जिसे महिलाओं ने प्राप्त किया है”।“ज्ञान एक पुरुष के जीवन की जड़ है”।“सामाजिक नीतिशास्त्र पर आधारित सामाजिक आदर्शों के द्वारा लोग और उनके धर्म को आँकना चाहिये। किसी भी दूसरे आदर्श का कोई मतलब नहीं होगा अगर लोगों के भले के लिये जरुरी अच्छाई धर्म आयोजित होता है”।“हर पुरुष जो चक्की के सिद्धांत को दोहराता है जैसे एक देश किसी दूसरे देश पर राज्य करने के लिये उपयुक्त नहीं होता को मानना चाहिये कि किसी दूसरे वर्ग पर राज्य करने के लिये एक वर्ग उपयुक्त नहीं होता”।“लंबे होने के बजाय जीवन अच्छा होना चाहियें”।“दिमाग की खेती मानव अस्तित्व का सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य होनी चाहिये”।“मानव नश्वर होता है। वैसे ही विचार होते हैं। एक विचार को फैलाव की जरुरत होती है जिस तरह एक पौधे को पानी की जरुरत होती है। नहीं तो दोनों मुरझा और मर जायेंगे”।“कोई एक जिसका दिमाग मुक्त नहीं यद्यपि जीवित है, मरने से बेहतर नहीं है”।“बुद्ध की सीख शाश्वत है, लेकिन उसके बाद भी बुद्ध उसको अचूक घोषित नहीं करते हैं”।“जैसे पानी की एक बूँद महासागर में मिलते ही अपनी पहचान खो देती है, व्यक्ति समाज में अपने होने का अस्तित्व नहीं खोता है जिसमें वो रहता है। व्यक्ति का जीवन स्वतंत्र होता है। वो अकेले समाज का विकास करने के लिये पैदा नहीं हुआ है, बल्कि अपने विकास के लिये हुआ है”।“किसी एक के अस्तित्व का प्रमाण है दिमाग की स्वतंत्रता”।“दिमाग की वास्तविकता वास्तविक स्वतंत्रता है”।“मैं धर्म को पसंद करता हूँ जो आजादी, समता और भाईचारा सिखाता है”।“इंसानों के लिये धर्म है ना कि धर्म के लिये इंसान”।“धर्म मुख्यत: केवल एक सिद्धांत की विषयवस्तु है। ये नियम का मामला नहीं है। जिस पल ये नियमों से बिगड़ता है, एक धर्म होने के नाते ये समाप्त होता है, क्योंकि ये जिम्मेदारियों को मारता है जो सच्चे धार्मिक कानून का एक सार है”।“व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिये एक वातावरण बनाना धर्म का बुनियादी विचार है”।“अगर आप ध्यान से पढ़ेंगे, आप देखेंगे कि बौद्ध धर्म कारणों पर आधारित है। इसमें जन्मजात लचीलेपन का तत्व है, जो किसी दूसरे धर्म में नहीं पाया जाता है”।“एक प्रसिद्ध व्यक्ति से अलग होता है एक महान आदमी जो समाज का नौकर बनने के लिये तैयार होता है”।“हिन्दू धर्म में, विकास के लिये जमीर, कारण और स्वतंत्र विचार के पास को कोई अवसर नहीं है”।“पति और पत्नि के बीच का रिश्ता एक सबसे घनिष्ठ मित्र की तरह होनी चाहिये”।“इसांन के लिये किसी एक के पास कोई सम्मान या आदर नहीं हो सकता जो समाज सुधारक की जगह ले और उसके बाद उस पदवी के तार्किक परिणाम को देखने से मना कर दे, उसे अकेले ही खराब काम का अनुसरण करने दें”।“एक कठोर वस्तु मिठाई नहीं बना सकता। किसी का भी स्वाद बदल सकता है। लेकिन जहर अमृत में नहीं बदल सकता”।“एक सफल क्रांति के लिये इतना ही काफी नहीं है कि वहाँ असंतोष हो। जो चाहिये वो गंभीर है और न्याय की आस्था के द्वारा, राजनीतिक और सामाजिक अधिकारों की जरुरत और महत्व”।“माना कि लंबे समय तक आपने सामाजिक आजादी प्राप्त नहीं की, जो भी स्वतंत्रता आपको कानून के द्वारा आपको उपलब्ध करायी जा रही है उसका आपके लिये कोई लाभ नहीं है”।
मनुस्मृति क्यों जलाई गई पढें
14 अक्टूबर 1956 को आंबेडकर ने बौद्ध धर्म अपनाया था. वे देवताओं के संजाल को तोड़कर एक ऐसे मुक्त मनुष्य की कल्पना कर रहे थे जो धार्मिक तो हो लेकिन ग़ैर-बराबरी को जीवन मूल्य न माने.
यदि नई दुनिया पुरानी दुनिया से भिन्न है तो नई दुनिया को पुरानी दुनिया से अधिक धर्म की जरूरत है.’ डॉक्टर आंबेडकर ने यह बात 1950 में ‘बुद्ध और उनके धर्म का भविष्य’ नामक एक लेख में कही थी. वे कई बरस पहले से ही मन बना चुके थे कि वे उस धर्म में अपना प्राण नहीं त्यागेंगे जिस धर्म में उन्होंने अपनी पहली सांस ली है.
14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया. आज उनके इस निर्णय को याद करने का दिन है. यह उनका कोई आवेगपूर्ण निर्णय नहीं था, बल्कि इसके लिए उन्होंने पर्याप्त तैयारी की थी.
उन्होंने भारत की सभ्यतागत समीक्षा की. उसके सामाजिक-आर्थिक ढांचे की बनावट को विश्लेषित किया था और सबसे बढ़कर हिंदू धर्म को देखने का विवेक विकसित किया.
गेल ओमवेट ने आंबेडकर की एक जीवनी लिखी है. उसका नाम है – डॉक्टर आंबेडकर: प्रबुद्ध भारत की ओर. यह प्रबुद्धता आंबेडकर के सामाजिक-आर्थिक चिंतन में तो दिखती ही है, वे धर्म के बिना मनुष्य की कल्पना भी नही करते हैं.
मुंबई के मिल मजदूरों, झुग्गी बस्तियों, गरीब महिलाओं के बीच भाषण देते हुए आंबेडकर समझ रहे थे कि भारतीय मन धर्म के बिना रह नही सकता लेकिन क्या यह वही धर्म होगा जिसने उस जीवन का अनुमोदन किया था जिसके कारण दलितों को सदियों से संतप्त रहना पड़ा है. वे इस धर्म को त्याग देना चाहते थे.
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