हम सब पाद मारते है. कुछ लोग सोचते है महिलाएँ तो पाद ही नही मारती.. अरे भाई! मारती है तुम्हारें बराबर मारती है। वो अलग बात है इनमें पाद रोकने की शक्ति थोड़ी ज्यादा होती है और हमें पता नही चलता। चलिए आज पाद के बारे में रोचक तथ्य जानते है..
 हालांकि मैं पाद-विशेषज्ञ तो नहीं फिर भी अपने अनुभव के हिसाब से कह सकता हूं, दुनिया में पादने से बेहतर दूसरा कोई सुख नहीं। पादकर संपूर्ण तृप्ति का एहसास मिलता है। महसूस होता है, पेट के डिब्बे में जो गैस कई मिनट या घंटों से परेशान कर रही थी- उसे मात्र एक पाद ने ध्वस्त कर दिया। तीव्र वेग से आया पाद पेट के साथ-साथ दिमाग को भी काफी हद तक सुकून देता है।
जब पाद बाॅडी में बनकर तैयार होता है तो उस समय इसका तापमान 98.6°F होता है।
पाद में आग लग सकती है यह ज्वलनशील होता है।
नहाते समय पाद में से ज्यादा बदबू इसलिए आती है क्योंकि हमारी नाक नमी में अच्छे से काम करती है।
पाद, 59% नाइट्रोज़न, 21% हाइड्रोज़न, 9% काॅर्बनडाई-ऑक्साइडस, 7% मिथेन, 3% आक्सीजन और 1% बकवास चीजों से मिलकर बना होता है।
अजब गजब की महत्वपूर्ण जानकारी
पादने से आपका BP कंट्रोल में रहता है और ये आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।
पाद रोकना आपकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि कई बार ये गैस दिमाग में जाकर सिरदर्द का कारण बनती है. जो पाद रोक लिया जाता है वह नींद में पक्का निकलता है।
हालांकि मेरी पत्नी को मेरा यों पादते रहना पसंद नहीं। पाद पर ही कई दफा बात तलाक तक पहुंच चुकी है। पर क्या करूं, ससुरी आदत ऐसी पड़ गई है कि छुटने का नाम ही नहीं लेती। वैसे मैंने पत्नी को बोल रखा है- जब मैं पादा करूं अपनी नाक में रूमाल ठूंस लिया करो। मगर स्थितियां तब भी काबू में नहीं रह पातीं। फिर भी किसी तरह मना ही लेता हूं।
अब पत्नी क्या जाने पादने का सुख। मुझे पादने से इत्ता प्यार है कि दुनिया का हर सुख इसके आगे बौना लगता है। दावा कर सकता हूं, अगर पाद-प्रतियोगिता में भाग लेना पड़ा तो जीतूंगा मैं ही।
बहरहाल, पेट, दिमाग और विचार को अगर दुरुस्त रखना है तो प्यारे जमकर पादो। क्योंकि जीवन का असली सुख पादने में
यदि आपको ऐसे चैम्बर में डाल दिया जाए जिसमें पूरे तरीके से आपका पाद भरा हो, तो भी आपकी दम घुटने से मौत नही होगी।
हवाई यात्रा के समय लोग ज्यादा गैस (पाद) छोड़ते है इसलिए जहाजों में बदबू कम करने के लिए चारकोल फिल्टर का इस्तेमाल किया जाता हैं।
इंसान का मरने के 3 घंटे बाद तक भी पाद आ सकता है।
धरती पर मौजूद सभी इंसान एक साल में लगभग 17,000,000,000,000,000 पाद मारते है।
पाद और टट्टी के बीच अंतर बताने का काम आपके पिछवाड़े में मौजूद नर्व करती है. लेकिन कई बार यदि टट्टी बहुत पतली हो जाए तो ये नर्व कंफ्यूज हो जाती है और पाद के साथ थोड़ी बहुत टट्टी भी निकल जाती है।
आपके पिछवाड़े से पाद निकलने की स्पीड 10ft/sec होती है. यह केक पर लगी मोमबत्ती आसानी से बुझा सकता है।
ऐसी दवाईयाँ भी आती है जिसे खाने पर आपके पाद में से गुलाब और चॉकलेट जैसी खूशबू आएगी। ex like: father christmas.
जो पाद अधिक मात्रा में nitrogen और co2 से मिलकर बने होते है उनमें से बदबू नही आती लेकिन ये आवाज बहुत ज्यादा करते है। पादते समय आप पिछवाड़े को जितना ज्यादा टाईट करोगे उतनी ज्यादा आवाज आएगी।
इंसान को सबसे ज्यादा पाद फलियां (beans) खाने के बाद आते है।
ब्लू व्हेल के पादने पर जो बुलबुला बनता है वह इतना बडा होता है कि उसमें एक घोडा आ सकता है।
प्र्थवी पर मौजूद सभी जीव में सबसे ज्यादा पाद दीमक मारता है। यह गाय से भी ज्यादा मिथेन छोड़ता है।
मध्य युग में लोग पाद को जार में बंद करके सूंघते थे. उनके द्वारा ऐसे मानना था कि ऐसा करने से मौत से बचा जा सकता है।
कुतो के अंदर इतनी क्षमता होती है कि ये खुद का पाद भी देख सकते है।
एक आम इंसान दिन में लगभग 14 बार पादता है और अपनी पूरी जिंदगी में लगभग 402,000 बार.
मुझे नहीं मालूम मेडिकल साइंस में पाद या पादने पर कभी कोई रिसर्च हुई है कि नहीं। पर हां इत्ता दावे के साथ कह सकता हूं कि यह विषय है बेहद शोध-युक्त। ज्यादा कुछ नहीं तो कम से कम इस बात पर तो रिसर्च होनी ही चाहिए कि इंसान दिन भर में कित्ता और कित्ते किलो पाद लेता है। (यहां पाद को- बतौर किलो- इसलिए लिखा क्योंकि पाद एक तरह से गैस ही होती है)। या फिर किन-किन स्थितियों-परिस्थितियों में पाद सबसे अधिक आते हैं। खुशी के पाद कैसे होतें, गम के पाद कैसे होते हैं, असंतोष के पाद कैसे होते हैं, अराजकता के पाद कैसे होते हैं, आंदोलन के पाद कैसे होते हैं, विमर्श या लेखन के पाद कैसे होते हैं, उत्तेजना के पाद कैसे होते हैं। आखिर मालूम तो चले कि पादने का मनुष्य के जीवन में कित्ता और कैसा महत्त्व है।
औरों के बारे में तो नहीं किंतु अपने बारे में कह सकता हूं कि मैं दिनभर में पांच-सात बार आराम से पाद लेता हूं। मुझको सबसे अधिक पाद व्यंग्य लिखते हुए आते हैं। व्यंग्य लिखते वक्त आ रहे पादों को मैं रोकता नहीं बल्कि खुलकर आने देता हूं। उस दौरान पाद जित्ता लंबा और तगड़ा आता है, व्यंग्य उत्ता ही उम्दा बनता है। इसे मैंने अब अपना टोटका-सा बना लिया है। जब भी व्यंग्य लिखने बैठता हूं- पादता अवश्य हूं। पाद के रास्ते मेरे पेट का सारा कचरा बाहर निकल जाता है। फिर मैं कहीं अच्छा लिख पाता हूं।
मुझे तेज-तर्रार पादने वाले अधिक पसंद हैं। उनके पादे की आवाज में एक अजीब तरह की गूंज होती है। गूंज की महक फिजा में कुछ देर तलक यों बनी रहती है- मानो किसी ने मदमस्त गंध वाला डियो छिड़का हो। धीमा पादने वाले अपने जीवन में भी बेहद धीमे होते हैं। पता नहीं तेज पादने में उन्हें क्या तकलीफ होती है। कई-कई तो इत्ते सियाने होते हैं कि अपने पाद को बीच में ही रोक लेते हैं। बेचारा पाद मन मसोस कर रह जाता है पेट के भीतर। गाली देता होगा कि साला कित्ता कंजूस है- मुझे बाहर भी नहीं निकलने देता। धीमा पाद सुस्त व्यक्तित्व की निशानी है।
पाद एक ऐसी चीज है- जिसे पास करने में न पैसे लगते हैं न अतिरिक्त भार सहना पड़ता है। बस जरा-सा अपने पिछवाड़े को कष्ट देना होता है। लेकिन इंसान इसमें भी सियानापन दिखला जाता है। यों, जीवन में तमाम तरह के कष्ट-तकलीफें झेल लेगा लेकिन पादने की बारी जब आएगी तो पिछवाड़े उठाके ही नहीं देगा। कैसे-कैसे लोग होते हैं दुनिया में। मतलब, फ्री का सुकून लेने में भी उनकी नानी मरती है।
मुझे याद है, एक दफा खुशवंत सिंह ने पाद पर बड़ा ही रोचक प्रसंग लिखा था अपने स्तंभ में। मित्र के साथ एक रात अपने कमरे में बीताने पर उन्हें पाद का जो अनुभव हासिल हुआ था- वही दर्ज था। साथ ही, यह भी लिखा था- दुनिया में सबसे खराब अमेरिकनस ही पादते हैं। उनके पाद बेहद बदबूदार और नापाक होते हैं। पाद ऐसा होना चाहिए जिसमें आवाज के साथ-साथ कुछ महक भी हो।
खैर, मैं इस बात का खास ध्यान रखता हूं कि चाहे अपने बिस्तर पर किसी भी तरह का पाद लूं मगर पब्लिस प्लेस में हमेशा महकदार ही पादूं। अधिक जोर से नहीं शालीनता के साथ पादूं। अमूमन, धड़ाम-बड़ाम वाले पादों से बचता हूं। मगर हां जब घर में या फिर व्यंग्य लिख रहा होता हूं, तो खूब मस्त और तरह-तरह की आवाजों के साथ पादता हूं।
 हालांकि मैं पाद-विशेषज्ञ तो नहीं फिर भी अपने अनुभव के हिसाब से कह सकता हूं, दुनिया में पादने से बेहतर दूसरा कोई सुख नहीं। पादकर संपूर्ण तृप्ति का एहसास मिलता है। महसूस होता है, पेट के डिब्बे में जो गैस कई मिनट या घंटों से परेशान कर रही थी- उसे मात्र एक पाद ने ध्वस्त कर दिया। तीव्र वेग से आया पाद पेट के साथ-साथ दिमाग को भी काफी हद तक सुकून देता है।
जब पाद बाॅडी में बनकर तैयार होता है तो उस समय इसका तापमान 98.6°F होता है।
पाद में आग लग सकती है यह ज्वलनशील होता है।
नहाते समय पाद में से ज्यादा बदबू इसलिए आती है क्योंकि हमारी नाक नमी में अच्छे से काम करती है।
पाद, 59% नाइट्रोज़न, 21% हाइड्रोज़न, 9% काॅर्बनडाई-ऑक्साइडस, 7% मिथेन, 3% आक्सीजन और 1% बकवास चीजों से मिलकर बना होता है।
अजब गजब की महत्वपूर्ण जानकारी
पादने से आपका BP कंट्रोल में रहता है और ये आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।
पाद रोकना आपकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि कई बार ये गैस दिमाग में जाकर सिरदर्द का कारण बनती है. जो पाद रोक लिया जाता है वह नींद में पक्का निकलता है।
हालांकि मेरी पत्नी को मेरा यों पादते रहना पसंद नहीं। पाद पर ही कई दफा बात तलाक तक पहुंच चुकी है। पर क्या करूं, ससुरी आदत ऐसी पड़ गई है कि छुटने का नाम ही नहीं लेती। वैसे मैंने पत्नी को बोल रखा है- जब मैं पादा करूं अपनी नाक में रूमाल ठूंस लिया करो। मगर स्थितियां तब भी काबू में नहीं रह पातीं। फिर भी किसी तरह मना ही लेता हूं।
अब पत्नी क्या जाने पादने का सुख। मुझे पादने से इत्ता प्यार है कि दुनिया का हर सुख इसके आगे बौना लगता है। दावा कर सकता हूं, अगर पाद-प्रतियोगिता में भाग लेना पड़ा तो जीतूंगा मैं ही।
बहरहाल, पेट, दिमाग और विचार को अगर दुरुस्त रखना है तो प्यारे जमकर पादो। क्योंकि जीवन का असली सुख पादने में
यदि आपको ऐसे चैम्बर में डाल दिया जाए जिसमें पूरे तरीके से आपका पाद भरा हो, तो भी आपकी दम घुटने से मौत नही होगी।
हवाई यात्रा के समय लोग ज्यादा गैस (पाद) छोड़ते है इसलिए जहाजों में बदबू कम करने के लिए चारकोल फिल्टर का इस्तेमाल किया जाता हैं।
इंसान का मरने के 3 घंटे बाद तक भी पाद आ सकता है।
धरती पर मौजूद सभी इंसान एक साल में लगभग 17,000,000,000,000,000 पाद मारते है।
पाद और टट्टी के बीच अंतर बताने का काम आपके पिछवाड़े में मौजूद नर्व करती है. लेकिन कई बार यदि टट्टी बहुत पतली हो जाए तो ये नर्व कंफ्यूज हो जाती है और पाद के साथ थोड़ी बहुत टट्टी भी निकल जाती है।
फ्लोरिडा में 13 साल के लड़के को स्कूल से बहुत अधिक पादने के कारण गिरफ्तार कर लिया था।
अंतरिक्ष मे जाने वाले यात्री पाद नही सकते, क्योंकि वहाँ पेट में द्रव्य से गैस को अलग करने के लिए गुरूत्वाकर्षण बल ही नही है
आपके पाद में से बदबू आने का कारण उसमें मौजूद 1% से भी कम Hydrogen Sulfide होता है।
यदि कोई इंसान 6 साल 9 महीने तक लगातार पाद मारें तो atom bomb जितनी एनर्जीं प्रोड्यूस कर सकता है।
चिम्पेंजी इतनी जोर से लगातार पादते है कि वैज्ञानिक इनके पाद को फाॅलो करके इन्हे जंगल में ढूंढ लेते है।
एक स्वस्थ इंसान पाद मारता है। अगर जो कोई इंसान पाद नहीं मारता है तो आप सोच लो की वो इंसान पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं है। पाद पुरुष हो या महिला दोनों ही मारती है। हालाँकि, उनके पाद मारने की स्टायल अलग हो सकती है। पाद और टट्टी के बीच अंतर बताने का काम आपके पिछवाड़े में मौजूद नर्व करती है। लकिन ये कई बार गलत भी बता देती है।
इस दुनिया में सभी लोग पाद मारते है। कुछ लोगो का कहना है की महिलाएँ पाद ही नही मारती। ऐसा कुछ भी नहीं है। महिलाए भी पुरुषो के बराबर पाद मारती है। हालाँकि महिलाओ में थोड़ी शक्ति होती है जिससे वो पाद रोकने में कामयाब हो जाती है
पादों के पांच प्रकार होते हैं:-
1- पादों का राजा है “भोंपू” हमारे पूर्वज इसे उत्तम पादम् कहते थे।यह घोषणात्मक और मर्दानगी भरा होता है।इसमें आवाज मे धमक ज्यादा और बदबू कम होती है।अतएव
जितनी जोर आवाज उतना कम बदबू
2- ‘शहनाई’ – हमारे पूर्वजो ने इसे मध्यमा ही कहा है। इसमें से आवाज निकलती है ठें ठें या कहें पूंऊऊऊऊऊ
3- ‘खुरचनी’ – जिसकी आवाज पुराने कागज के सरसराहट जैसी होती है। यह एक बार में नई निकलती है। यह एक के बाद एक कई ‘पिर्र..पिर्र..पिर्र..पिर्र’ की आवाज के साथ आता है।
यह ज्यादा गरिष्ठ खाने से होता है।
4- ‘तबला’ – तबला अपनी उद्घोषणा केवल एक फट के आवाज के साथ करता है।।तबला एक खुदमुख्तार पाद है क्योंकि यह अपने मालिक के इजाजत के बगैर ही निकल जाता है। अगर बेचारा लोगों के बीच बैठा हो तो शर्म से पानी-पानी हो जाता है।
5- ‘फुस्कीं’ – यह एक निःशब्द ‘बदबू बम ‘ है। चूँकि इसमें आवाज नई होती है इसलिए ये पास बैठे व्यक्ति को बदबू का गुप्त दान देने के लिए बढ़िया है और दान देने वाला अपने नाक को बंद कर के मैने नई पादा है का दिखावा बङे आसानी से कर सकता है । लेकिन गुप्त दान देने के बाद जापानी कहावत “जो बोला , सो पादा” याद रखते हुए लोगों को खुद ही दाता को ताङने दीजिए । आप मत बोलिए।
अब पाद की श्रेणी निर्धारित करते हुए पाद का आनन्द उठाइये।
आपके पिछवाड़े से पाद निकलने की स्पीड 10ft/sec होती है. यह केक पर लगी मोमबत्ती आसानी से बुझा सकता है।
ऐसी दवाईयाँ भी आती है जिसे खाने पर आपके पाद में से गुलाब और चॉकलेट जैसी खूशबू आएगी। ex like: father christmas.
जो पाद अधिक मात्रा में nitrogen और co2 से मिलकर बने होते है उनमें से बदबू नही आती लेकिन ये आवाज बहुत ज्यादा करते है। पादते समय आप पिछवाड़े को जितना ज्यादा टाईट करोगे उतनी ज्यादा आवाज आएगी।
इंसान को सबसे ज्यादा पाद फलियां (beans) खाने के बाद आते है।
ब्लू व्हेल के पादने पर जो बुलबुला बनता है वह इतना बडा होता है कि उसमें एक घोडा आ सकता है।
प्र्थवी पर मौजूद सभी जीव में सबसे ज्यादा पाद दीमक मारता है। यह गाय से भी ज्यादा मिथेन छोड़ता है।
मध्य युग में लोग पाद को जार में बंद करके सूंघते थे. उनके द्वारा ऐसे मानना था कि ऐसा करने से मौत से बचा जा सकता है।
कुतो के अंदर इतनी क्षमता होती है कि ये खुद का पाद भी देख सकते है।
एक आम इंसान दिन में लगभग 14 बार पादता है और अपनी पूरी जिंदगी में लगभग 402,000 बार.
मुझे नहीं मालूम मेडिकल साइंस में पाद या पादने पर कभी कोई रिसर्च हुई है कि नहीं। पर हां इत्ता दावे के साथ कह सकता हूं कि यह विषय है बेहद शोध-युक्त। ज्यादा कुछ नहीं तो कम से कम इस बात पर तो रिसर्च होनी ही चाहिए कि इंसान दिन भर में कित्ता और कित्ते किलो पाद लेता है। (यहां पाद को- बतौर किलो- इसलिए लिखा क्योंकि पाद एक तरह से गैस ही होती है)। या फिर किन-किन स्थितियों-परिस्थितियों में पाद सबसे अधिक आते हैं। खुशी के पाद कैसे होतें, गम के पाद कैसे होते हैं, असंतोष के पाद कैसे होते हैं, अराजकता के पाद कैसे होते हैं, आंदोलन के पाद कैसे होते हैं, विमर्श या लेखन के पाद कैसे होते हैं, उत्तेजना के पाद कैसे होते हैं। आखिर मालूम तो चले कि पादने का मनुष्य के जीवन में कित्ता और कैसा महत्त्व है।
औरों के बारे में तो नहीं किंतु अपने बारे में कह सकता हूं कि मैं दिनभर में पांच-सात बार आराम से पाद लेता हूं। मुझको सबसे अधिक पाद व्यंग्य लिखते हुए आते हैं। व्यंग्य लिखते वक्त आ रहे पादों को मैं रोकता नहीं बल्कि खुलकर आने देता हूं। उस दौरान पाद जित्ता लंबा और तगड़ा आता है, व्यंग्य उत्ता ही उम्दा बनता है। इसे मैंने अब अपना टोटका-सा बना लिया है। जब भी व्यंग्य लिखने बैठता हूं- पादता अवश्य हूं। पाद के रास्ते मेरे पेट का सारा कचरा बाहर निकल जाता है। फिर मैं कहीं अच्छा लिख पाता हूं।
मुझे तेज-तर्रार पादने वाले अधिक पसंद हैं। उनके पादे की आवाज में एक अजीब तरह की गूंज होती है। गूंज की महक फिजा में कुछ देर तलक यों बनी रहती है- मानो किसी ने मदमस्त गंध वाला डियो छिड़का हो। धीमा पादने वाले अपने जीवन में भी बेहद धीमे होते हैं। पता नहीं तेज पादने में उन्हें क्या तकलीफ होती है। कई-कई तो इत्ते सियाने होते हैं कि अपने पाद को बीच में ही रोक लेते हैं। बेचारा पाद मन मसोस कर रह जाता है पेट के भीतर। गाली देता होगा कि साला कित्ता कंजूस है- मुझे बाहर भी नहीं निकलने देता। धीमा पाद सुस्त व्यक्तित्व की निशानी है।
पाद एक ऐसी चीज है- जिसे पास करने में न पैसे लगते हैं न अतिरिक्त भार सहना पड़ता है। बस जरा-सा अपने पिछवाड़े को कष्ट देना होता है। लेकिन इंसान इसमें भी सियानापन दिखला जाता है। यों, जीवन में तमाम तरह के कष्ट-तकलीफें झेल लेगा लेकिन पादने की बारी जब आएगी तो पिछवाड़े उठाके ही नहीं देगा। कैसे-कैसे लोग होते हैं दुनिया में। मतलब, फ्री का सुकून लेने में भी उनकी नानी मरती है।
मुझे याद है, एक दफा खुशवंत सिंह ने पाद पर बड़ा ही रोचक प्रसंग लिखा था अपने स्तंभ में। मित्र के साथ एक रात अपने कमरे में बीताने पर उन्हें पाद का जो अनुभव हासिल हुआ था- वही दर्ज था। साथ ही, यह भी लिखा था- दुनिया में सबसे खराब अमेरिकनस ही पादते हैं। उनके पाद बेहद बदबूदार और नापाक होते हैं। पाद ऐसा होना चाहिए जिसमें आवाज के साथ-साथ कुछ महक भी हो।
खैर, मैं इस बात का खास ध्यान रखता हूं कि चाहे अपने बिस्तर पर किसी भी तरह का पाद लूं मगर पब्लिस प्लेस में हमेशा महकदार ही पादूं। अधिक जोर से नहीं शालीनता के साथ पादूं। अमूमन, धड़ाम-बड़ाम वाले पादों से बचता हूं। मगर हां जब घर में या फिर व्यंग्य लिख रहा होता हूं, तो खूब मस्त और तरह-तरह की आवाजों के साथ पादता हूं।
एक नाक-भौं सिकोड़ने वाले विषय पर रोचक और सार्थक रचना की प्रस्तुति प्रशंसनीय है. "आवाज के साथ-साथ कुछ महक" पर कुछ और चिंतन करके और भी कुछ पठनीय तथ्य दिए जा सकते हैं.
ReplyDeleteपुनश्च: वैसे मेरे विचार में, पूरे विश्व में महिलाऐं 'स्विश विशेषज्ञ' होती हैं, अर्थात हल्की ध्वनि मुक्त अधोवायु निष्क्रमण पटु होती हैं.
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