जय भीम जय भारत
जिस महापुरुष ने अपने ग्रंथों को रखने के लिए ‘राजगृह’ जैसा विशाल भवन बनवाया था, उसी ने २५ दिसंबर १९२७ के दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?
जिस महापुरुष के पास लगभग तीस हज़ार से भी अधिक मूल्य की निजी पुस्तकें थीं, उसी ने एक दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?
जिस महापुरुष का पुस्तक-प्रेम संसार के अनेक विद्वानों के लिए नहीं, अनेक पुस्तक-प्रकाशकों और विक्रेताओं तक के लिए आश्चर्य का विषय था, उसी ने एक दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?
उस पुस्तक का नाम क्या था?
उसका नाम था ‘मनु-स्मृति’. आइये हम जाने कि वह क्यों जलाई गयी?
इस पुस्तक में ऐसा हलाहल विष भरा है कि जिसके चलते इस देश में कभी राष्ट्रीय एकीकरण का पौधा कभी पुष्पित और पल्लवित नहीं हो सकता!
वैसे तों इस पुस्तक में सृष्टि की उत्पत्ति की जानकारी भी दी गयी है लेकिन असलियत यह सब अज्ञानी मन के तुतलाने से अधिक कुछ भी नहीं हैं.
जाने मनुस्मृति का इतिहास
स्त्री और शूद्र विरोधी कथित धार्मिक पुस्तक मनुस्मृति 25 दिसंबर को देशभर में जलाई गई। ब्राह्मणवाद-मनुवाद हो बर्बाद! बाबा साहब डाक्टर भीमराव आंबेडकर का ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष जिंदाबाद!! नारों के साथ भागलपुर स्टेशन चौंक पर न्याय मंच, जनसंसद एवं बिहार प्रदेश दलित-युवा संघ ने मनुस्मृति जलायी। उक्त अवसर पर न्याय मंच के रिंकु एवं डॉ. मुकेश कुमार ने कहा कि मनुस्मृति दलितों-वंचितों और महिलाओं के शोषण को जायज ठहराने वाला विषमतावादी धर्म ग्रन्थ है। यह दलितों-शूद्रों व महिलाओं को गुलाम व गर्त में धकेलने के लिये जिम्मेदार है।
दोनों वक्ताओं ने कहा कि मनुस्मृति घृणा व विद्वेष फैलाने वाला और यथास्थितिवादी समाज का घोषणा पत्र है। यही कारण है कि बाबा साहब ने 25 दिसंबर 1927 को नासिक में मनुस्मृति को जलाते हुए बीसवीं सदी में नये सिरे से सामाजिक क्रान्ति का आगाज किया था। आज भी यह परियोजना अधूरी है, इसे पूरा करने के लिये संघर्ष को आगे बढाने की जरूरत है।
जाने मनुस्मृति और स्त्री
आज से ठीक 89 साल पहले 25 दिसंबर 1927 को बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने रात्रि के 9 बजे हिन्दू भारत का तानाबाना बुनने वाली मनुस्मृति-मनु के कानून के दहन संस्कार का नेतृत्व किया था। इसीलिए 25 दिसंबर को 'मनुस्मृति दहन दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है, जिसे स्त्रीवादियों का एक समूह ' भारतीय महिला दिवस' के रूप में मनाने का आग्रह भी रखता रहा है।
उस इतिहास निर्मात्री क्रिसमस की रात सभी कार्यकर्ताओं ने पांच संकल्प लिए गए-
1. मैं जन्म-आधारित चतुर्वर्ण में विश्वास नहीं रखता।
2. मैं जातिगत भेदभाव में विश्वास नहीं रखता।
3. मैं विश्वास करता हूं की अछूत प्रथा, हिन्दू धर्म का कलंक है और मैं अपनी पूरी ईमानदारी और क्षमता से उसे समूल नष्ट करने की कोशिश करूंगा।
4. यह मानते हुए की कोई छोटा-बड़ा नहीं है, मैं खानपान के मामले में, कम से कम हिन्दुओं के बीच, किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करूंगा।
5. मैं विश्वास करता हूँ की मंदिरों, पानी के स़्त्रोतों, स्कूलों और अन्य सुविधाओं पर बराबर का अधिकार है।
छ: लोगों ने दो दिन की मेहनत से सभा के लिए पंडाल बनाया था। पंडाल के नीचे गडढा खोदा गया था, जिसकी गहराई छह इंच थी और लम्बाई व चौड़ाई डेढ़-डेढ़ फीट। इसमें चंदन की लकड़ी के टुकड़े भरे हुए थे। गड्ढे के चारों कोनों पर खंभे गाड़े गए थे। तीन ओर बैनर टंगे थे। क्रिसमस कार्ड की तरह झूल रहे इन बैनरों पर लिखा था-
– मनुस्मृति दहन भूमि।
– ब्राहम्णवाद को दफनाओ।
– छुआछूत को नष्ट करो।
धन्यवाद
अच्छा लगा तो शेयर करें
जिस महापुरुष ने अपने ग्रंथों को रखने के लिए ‘राजगृह’ जैसा विशाल भवन बनवाया था, उसी ने २५ दिसंबर १९२७ के दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?
जिस महापुरुष के पास लगभग तीस हज़ार से भी अधिक मूल्य की निजी पुस्तकें थीं, उसी ने एक दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?
जिस महापुरुष का पुस्तक-प्रेम संसार के अनेक विद्वानों के लिए नहीं, अनेक पुस्तक-प्रकाशकों और विक्रेताओं तक के लिए आश्चर्य का विषय था, उसी ने एक दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?
उस पुस्तक का नाम क्या था?
उसका नाम था ‘मनु-स्मृति’. आइये हम जाने कि वह क्यों जलाई गयी?
इस पुस्तक में ऐसा हलाहल विष भरा है कि जिसके चलते इस देश में कभी राष्ट्रीय एकीकरण का पौधा कभी पुष्पित और पल्लवित नहीं हो सकता!
वैसे तों इस पुस्तक में सृष्टि की उत्पत्ति की जानकारी भी दी गयी है लेकिन असलियत यह सब अज्ञानी मन के तुतलाने से अधिक कुछ भी नहीं हैं.
जाने मनुस्मृति का इतिहास
स्त्री और शूद्र विरोधी कथित धार्मिक पुस्तक मनुस्मृति 25 दिसंबर को देशभर में जलाई गई। ब्राह्मणवाद-मनुवाद हो बर्बाद! बाबा साहब डाक्टर भीमराव आंबेडकर का ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष जिंदाबाद!! नारों के साथ भागलपुर स्टेशन चौंक पर न्याय मंच, जनसंसद एवं बिहार प्रदेश दलित-युवा संघ ने मनुस्मृति जलायी। उक्त अवसर पर न्याय मंच के रिंकु एवं डॉ. मुकेश कुमार ने कहा कि मनुस्मृति दलितों-वंचितों और महिलाओं के शोषण को जायज ठहराने वाला विषमतावादी धर्म ग्रन्थ है। यह दलितों-शूद्रों व महिलाओं को गुलाम व गर्त में धकेलने के लिये जिम्मेदार है।
दोनों वक्ताओं ने कहा कि मनुस्मृति घृणा व विद्वेष फैलाने वाला और यथास्थितिवादी समाज का घोषणा पत्र है। यही कारण है कि बाबा साहब ने 25 दिसंबर 1927 को नासिक में मनुस्मृति को जलाते हुए बीसवीं सदी में नये सिरे से सामाजिक क्रान्ति का आगाज किया था। आज भी यह परियोजना अधूरी है, इसे पूरा करने के लिये संघर्ष को आगे बढाने की जरूरत है।
जाने मनुस्मृति और स्त्री
आज से ठीक 89 साल पहले 25 दिसंबर 1927 को बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने रात्रि के 9 बजे हिन्दू भारत का तानाबाना बुनने वाली मनुस्मृति-मनु के कानून के दहन संस्कार का नेतृत्व किया था। इसीलिए 25 दिसंबर को 'मनुस्मृति दहन दिवस' के रूप में भी मनाया जाता है, जिसे स्त्रीवादियों का एक समूह ' भारतीय महिला दिवस' के रूप में मनाने का आग्रह भी रखता रहा है।
उस इतिहास निर्मात्री क्रिसमस की रात सभी कार्यकर्ताओं ने पांच संकल्प लिए गए-
1. मैं जन्म-आधारित चतुर्वर्ण में विश्वास नहीं रखता।
2. मैं जातिगत भेदभाव में विश्वास नहीं रखता।
3. मैं विश्वास करता हूं की अछूत प्रथा, हिन्दू धर्म का कलंक है और मैं अपनी पूरी ईमानदारी और क्षमता से उसे समूल नष्ट करने की कोशिश करूंगा।
4. यह मानते हुए की कोई छोटा-बड़ा नहीं है, मैं खानपान के मामले में, कम से कम हिन्दुओं के बीच, किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करूंगा।
5. मैं विश्वास करता हूँ की मंदिरों, पानी के स़्त्रोतों, स्कूलों और अन्य सुविधाओं पर बराबर का अधिकार है।
छ: लोगों ने दो दिन की मेहनत से सभा के लिए पंडाल बनाया था। पंडाल के नीचे गडढा खोदा गया था, जिसकी गहराई छह इंच थी और लम्बाई व चौड़ाई डेढ़-डेढ़ फीट। इसमें चंदन की लकड़ी के टुकड़े भरे हुए थे। गड्ढे के चारों कोनों पर खंभे गाड़े गए थे। तीन ओर बैनर टंगे थे। क्रिसमस कार्ड की तरह झूल रहे इन बैनरों पर लिखा था-
– मनुस्मृति दहन भूमि।
– ब्राहम्णवाद को दफनाओ।
– छुआछूत को नष्ट करो।
धन्यवाद
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मैं डॉ अम्बेडकर के विचारो से सहमत हूँ, भेदभावमूलक वर्णाश्रम व्यवस्था अर्थात जातिप्रथा ने निश्चित ही दलितों को सदियो से शोषित दमित और उत्पीड़ित होने के लिये मजबूर किया है ।
ReplyDeleteइसके कारन वे मानवीय प्रतिष्ठा और गरिमापूर्ण जीवन से वंचित रहे है और अपमानित होते रहे है
इस कारण हिन्दू समाज कभी संगठित नही हो सका है ।
दलित वर्ग को चाहिए की वो जातिसूचक उपनाम को छोड़ और वर्णव्यवस्था पर प्रहार करके अपने नाम में आर्य शब्द जोड़े, साथ ही वे व्यवशायीक और तकनिकी शिक्षा प्राप्त करे, और गावँ छोड़कर शहर की तरफ आये ।
डॉ अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक शुद्र कौन थे में बोला है की शुद्र वह क्षत्रिय थे जिनका ब्राह्मणों ने जनेऊ संस्कार करने से मना करके सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया था, क्योंकि उन्होंने बौद्ध धर्म को छोड़कर हिन्दू धर्म अपनाने से तब इंकार कर दिया था ।
अतः मैं ब्राह्मणों और अन्य विद्वानों से आग्रह करूँगा की वर्णव्यवस्था और जातीप्रथा को बढ़ावा देने वाले ग्रंथो को संशोधित करके, उससे भेदभाव करने वाले श्लोको और उपदेशो को हटा दे , और हो सके तो काल्पनिक पुराणों को नष्ट कर दे, क्योंकि पुराणों में केवल बकबास काल्पनिक और अंधविश्वासी बाते भड़ी पड़ी है ।
समाज में जो आज भी छुआछूत एक हद तक बना हुआ और विशेषकर गावँ में, उसका खात्मा किया जाना आवश्यक है ।
कुछलोग वर्णव्यवस्था को जातिप्रथा से अलग मानते है और वर्णव्यवस्था की परमपावन बताते है, उन्हें समझना चाहिए की इस तरह की विभाजन का आधुनिक समाज में कोई स्थान नही होना चाहिए और छुआछूत तो एक कलंक है जिसका अंत किये बिना भारत कभी विश्वगुरु बनने का ख़्वाब देख ही नही सकता ।
kisi dharm k granth aise kisi ko nast krne k koi adhikar nhi h
DeleteUnknown23 April 2020 at 13:04
Deleteविशुद्ध मनुस्मृति में ऐसा कुछ नहीं है और जो मनुस्मृति बाबा साहब ने जलाया वो मैक्समूलर और विलियम हंटर द्वारा लिखी गई मनुस्मृति थी जो हमारे संस्कृति को बर्बाद करने व समाज को तोड़ने के उद्देश्य से बनाई गई थी
विशुद्ध मनुस्मृति में ऐसा कुछ नहीं है और जो मनुस्मृति बाबा साहब ने जलाया वो मैक्समूलर और विलियम हंटर द्वारा लिखी गई मनुस्मृति थी जो हमारे संस्कृति को बर्बाद करने व समाज को तोड़ने के उद्देश्य से बनाई गई थी
ReplyDeleteMai bhi is Baat se puri Tarah Sahamat hu...Jatiwad-Chuwachut jaisi ku pratha ka khatam hona bahot Jaruri hai...
ReplyDeleteAapki Jankari ke liye Aapko dil se Dhannyawaad...JAI BHEEM