Saturday, 31 March 2018

SC/ST एक्ट: सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर से नाखुश भाजपा के दलित सांसद, उठाई ये मांग

। बीजेपी के दलित सांसद सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत कड़े प्रावधानों को कम करने के कारण नाराज हैं। सत्तारूढ़ भाजपा के दलित सांसदों ने बुधवार को सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत से मुलाकात की है और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ इस मामले को उठाने के लिए कहा है। सूत्रों के मुताबिक, एक मंत्री सहित कई दलित सांसदों ने सरकार से न्यायालय में एक समीक्षा याचिका दायर करने को कहा


दलित समाज हुआ एकजुट

सांसद और भाजपा के एससी सेल के प्रमुख विनोद कुमार सोनकर ने कहा कि, यह संशोधन परेशान करने वाले लोगों को सजा से बचाएगा। भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी के दलित सांसद बहुत परेशान हैं। अब केवल एक चीज बचाी है एससी और एसटी के आरक्षण को खत्म करना। मुझे डर है कि फिलहाल चीजें उस दिशा में आगे बढ़ रही हैं




दलित समाज ने एससी/एसटी एक्ट में संसोधन को लेकर एकजुट हो गया है. इसी कड़ी में समाज के लोगों ने दादरी के रोज गार्डन में मीटिंग कर रोष प्रदर्शन किया. साथ ही निर्णय लिया कि दो अप्रैल को भारत बंद में दलित समाज बढ़चढक़र भाग लेगा. दलित समाज ने केंद्र सरकार को आगाह किया कि एक्ट में संसोधन वापिस नहीं लिया तो देशभर में एकजुटता दिखाते हुए आंदोलन शुरु किया जाएगा.

दलित समाज के अध्यक्ष जगदीश राय की अध्यक्षता में रोज गार्डन में बैठक आयोजित की गई. बैठक में दलित नेताओं ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया कि एससी-एसटी कानून में संशोधन कर उनके समाज के साथ अन्याय किया हैय केंद्र सरकार द्वारा संशोधन को वापिस लेना चाहिए.

इस दौरान केंद्र सरकार के खिलाफ रोष प्रदर्शन करते हुए नारेबाजी की. प्रदर्शन के दौरान संबोधित करते हुए दलित नेता जगदीश राय व जसवंत कलियाणा ने संयुक्त रूप से कहा कि दो अपै्रल को भारत बंद के साथ ही दादरी में विरोध रैली होगी. उन्होंने कहा कि एससी-एसटी एक्ट में संशोधन किया है जिसका वो विरोध करते हैं.
जाने sc st act के बारे में

इसी फैसले के खिलाफ 2 अप्रैल को भारत बंद करने का आह्वान किया गया है. साथ ही इसके विरोध में दो अपै्रल को दादरी में सैकडों की सख्या में एससी और एसटी समाज के लोग एकत्रित होंगे और रोष प्रदर्शन करते हुए लघु सचिवालय पहुंचेंगे. प्रदर्शन के बाद डीसी को राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा जाएगा. दलित नेताओं ने अल्टीमेटम दिया कि अगर एक्ट में किए संसोधन को वापिस नहीं लिया तो देश भर का दलित समाज बड़े स्तर पर आंदोलन करेगा.

Friday, 30 March 2018

SC-ST एक्ट के खिलाफ जारी फरमान पर एकजुट हुआ दलित समाज

जय भीम साथियों
उत्तर प्रदेश में बहराइच से बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले ने अब पार्टी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है. उनका कहना है कि पार्टी में दलितों पिछड़ों के साथ इंसाफ नहीं हो रहा इसलिए वह एक अप्रैल को लखनऊ में रैली करेंगी. वह इस मुहिम में मायावती से भी जुड़ने को तैयार हैं. उधर, यूपी सरकार में सहयोगी दल के मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने भी फिर सरकार के कामकाज़ से नाराज़गी जताई है. 

एससी-एसटी एक्ट में बदलाव के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर विपक्ष के साथ-साथ सरकार में भी खलबली है. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका दाख़िल करने की अर्ज़ी को लेकर एनडीए के सभी दलित सांसद पीएम नरेंद्र मोदी से संसद में मुलाकात करेंगे. कांग्रेस भी सरकार से इस फ़ैसले पर पुनर्विचार याचिका देने की मांग कर रही है. वहीं राष्‍ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग आज राष्‍ट्रपति से मिलेगा और उसने पीएम मोदी से भी मिलने के लिए समय मांगा है. 

वहीं मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति( अत्याचार निवारण) अधिनियमके संबंध में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर केन्द्र सरकार से तत्काल पुनरीक्षण याचिका दायर करने की मांग  की है.


सेवा में
          सर्व श्री, 

1-उदित राज
2-प्रो0 राम शंकर
3-साध्वी सावित्री बाई फूले
4-कमलेश पासवान
5-श्रीमति प्रियंका सिंह रावत
6-अशोक कुमार दोहरे
7-अंशुल वर्मा
8-राजेश कु0 दिवाकर
9-भानु प्रताप सिंह
10-विनोद कुमार सोनकर
11-श्रीमती नीलम सोनकर
12-श्रीमती अंजू बाला 
13-कौशल किशोर
14-डॉ0 यशवंत सिंह

समस्त एस०सी०/एस०टी० सांसद, भारत सरकार

विषय:-117वॉ संविधान संशोधन (प्रोन्नति में आरक्षण बिल) लोकसभा में पास कराओ या इस्तीफा दो

महोदय/महोदया
             आपको भली भांति अवगत है कि 117 वां संविधान संसोधन बिल राज्य सभा से पारित हो चुका है और लोक सभा में लम्बित है।जब कि यह बिल 1995 से लम्बित था आप जिस पार्टी से जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उस सरकार ने अपनी दलितविरोधी मानसिकता का उदाहरण दे दिया है।
   आप यूपी से लोक सभा की उन सीटों से सांसद है जो भारत के संविधान में उल्लेखित प्रतिनिधत्व अधिकार पर संरक्षित है इसलिए आज आप सांसद है और संसद मे दलित समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं किन्तु आप अपने दलित समाज के अधिकारो के लिए संसद मे आवाज क्यों नहीं उठाते हो।
         आप की सरकार पूर्ण बहुमत की सरकार है आप सभी दलित सांसद सरकार पर दबाव क्यों नहीं बनाते हो। ऐसी क्या मज़बूरी है की आप सामूहिक रूप से प्रधानमंत्री को इस्तीफा क्यों नही सौंप देते है क्यों आप सक्रिय भूमिका नहीं अपनाते हो??
       आप भी बाबा साहेब को धोखा दे रहे हो। आप समाज के प्रति ज़िम्मेदार नहीं हो। आप ने आरक्षण के बल पर सांसदी तो ले ली लेकिन आप उन लाखों लोगों की ओर नहीं देख रहे हैं जो आप की निष्क्रियता के कारण तमाम कानूनी/ सरकारी बाध्यताओं को झेलने को मजबूर है कुछ तो शर्म करो।
       यदि आप सक्रिय भूमिका नहीं अदा कर सकते तो आप या तो बिल पास कराओ या समाज के लोगो के बीच मत जाओ। आप का समाज के लोग इस्तीफा मांग रहे हैं आप चुन सकते हैं 

सांसदी या समाज। 

वर्ना वो दिन दूर नही जब समाज के लोग बहिष्कार करंगे।
   अतः आप से आग्रह है कि 117वॉ संविधान संशोधन बिल पास कराओ या इस्तीफा दो। 


" इस मैसेज को इतना शेयर करें कि सभी दलित सांसदों तक पहुँच जाये।


फूलन देवी एक ऐसी साहसी महिला थी जिसके कारण ही sc st एट्रोसिटी कानून बना था..उसने 22 राजपूत लोगो की गर्दन काटकर अपने साथ हुए रेप का बदला लिया था.........
ईसी कारण ये कानून राजीव गांधी ने बनवाया था वो सरकार डर गई थी की कही ऐसा ना हो की sc/st के लोग मारने काटने पर उत्तर जाए.....
इतिहास गवाह हे जब जब अपने लोगो ने अपनी ताकत दिखाई है...इतिहास ही बदल दिया है....पर हमारे लोग सो रहे हे अभी...
जब एक महिला इतना साहस कर सकती है तो देश के 20 करोड़ sc और 10 करोड़ st क्या कर रहे है..



 एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विपक्ष और सरकार आमने-सामने आ गई है. जब से यह फैसला आया है, तब से कांग्रेस इस फैसले से नाराज चल रही है. मगर अब कांग्रेस नेताओं ने राहुल गांधी की नेतृत्व में संसद परिसर में स्थित महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने प्रदर्शन किया और सरकार से एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की. इस दौरान नारे लगाए जा रहे थे- दलितों के सम्मान में, राहुल गांधी मैदान में. बताया जा रहा है कि इस कानून को कानून को हल्का बनाए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से न सिर्फ कांग्रेस पार्टी नाराज चल रही है, बल्कि बीजेपी के भी दलित नेता नाराज चल रहे हैं. 






एससी-एसटी एक्ट में फौरन गिरफ्तारी ना करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कांग्रेस ने इसको लेकर सीधा केन्द्र की मोदी सरकार पर हमला बोला है। शुक्रवार को संसद में विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि सरकार ने ठीक तरीके से कोर्ट में पक्ष नहीं रखा।

एससी-एसटी एक्ट पर रिव्यू पेटिशन की मांग
संसद परिसर में गांधी की प्रतिमा के सामने प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस नेताओं ने एससी-एसटी एक्ट पर सरकार से रिव्यू पेटिशन दाखिल करने की मांग की। इसके साथ ही उन्होंने यह नारे लगाए- ‘दलितों के सम्मान में, राहुल गांधी मैदान में।’
जय भीम जय भारत 
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Thursday, 29 March 2018

मनुस्मृति के विचार

जय भीम  जय भारत
मनुस्मृति क  विचार
इससे पहले की हम मनुस्मृति क्यों जलाई गयी को जाने, मनुस्मृति का मकसद जान लेते हैं, मनुस्मृति संविधान इसलिए लिखा गया था की हारे हुए बौद्ध/राक्षश/असुर/दलित  फिर दोबारा संगठित होकर सर न उठा पाएं, उनका परमानेंट गुलाम बनाने का ग्रन्थ है मनुस्मृति, आईये मनुस्मृति पर ओशो जी के विचार से शुरू करते हैं
sc st act के बारे में जानें
 मै कहता हूं
 मनुस्मृति दहन भूमि। – ब्राहम्णवाद को दफनाओ। – छुआछूत को नष्ट करो । 

मनुस्मृति क्यों जलाई गई पढें
“ गरीब आदमी तो क्रांति की कल्पना भीनहीं कर सकते क्योंकि उसको तो किसी भीप्रकार कि शिक्षा की अनुमति ही नहीं दी गई.उसे अपने से उपर के तीन वर्णों से किसी भीसंपर्क से मना कर दिया गया वो शहर केबाहर रहता है वो शहर के अंदर नहीं रहसकता.गरीब लोगों के कुँए इतने गहरे नहीं हैं वे कुँए बनाने में ज्यादा पैसा नहीं डाल सकतेहैं. व्यवसायियों के पास अपने बड़े और गहरेकुँए है और राजा के पास अपने कुँए है ही। अगर कभी बारिश नहीं आए और उसके कुँएसूख रहे होते हैं, तो भी शूद्र को अन्य किसीके कुएं से पानी लेने की अनुमति नहीं है उसको किसी नदी से पानी लाने के लिए दसमील दूर जाना पड़ सकता है. वो इतना भूखाहै की दिन मे एक बार के भोजन का प्रबंधनकरना भी मुश्किल है |उसको कोई पोषणनहीं मिलता,वे कैसे क्रांति के बारे में सोचसकते हैं? वह यह जानता है कि कि यहीउसकी किस्मत है: पुजारी ने उनको यहीबताया है यही उनकी मानसिकता में जड़ करगया है|“इश्वर ने आप को अपने पर भरोसादिखाने का मौका दे दिया है. यह गरीबी  कुछभी नहीं है, यह कुछ वर्षों के लिए ही है,आपवफादार रह सकते हैं तो आपको महान फ़लमिलेगा”| तो एक तरफ़ तो पुजारी किसी भीपरिवर्तन के खिलाफ उन्हें ये उपदेश देताजाता है है, और दूसरी तरफ वे परिवर्तन करभी नहीं सकते क्योकि वे कुपोषण काशिकार हैं. और आप के लिये एक बातसमझने की है कि कुपोषित व्यक्ति बुद्धि बलखो देता है. बुद्धि बल वहीँ खिलता है जहाँ वोसब कुछ होता है है जिसकी शरीर कोजरूरत है,इतना ही नहीं इसके साथ साथ‘कुछ और’ भी चाहिए. ये जो ‘कुछ और’और है यही तो बुद्धि हो जाता है,बुद्धि एकलक्जरी है. एक दिन में केवल एक बारभोजन करने वाला व्यक्ति के पास कुछ भीनहीं है, बुद्धि विकसित करने के लिए उस्केपास कोई ऊर्जा नहीं है. यह बुद्धिजीवी वर्ग हैजो विचारों, नए दर्शन, जीवन के नए तरीके,भविष्य के लिए नए सपने बनाता है| लेकिनयहाँ बुद्धिजीवि तो शीर्ष पर पहले से ही है.वास्तव में भारत मे जबरदस्त महत्व का कामकिया गया है विश्व का कोई अन्य देश इतनासक्षम नहीं है कि  इस तरह के किसीवैज्ञानिक तरीके से यथास्थिति बनाए रखें.और आप हैरान होंगे ये एक आदमी ने किया,वो मनु था. हजारों साल बाद उसके सूत्रअभी भी  वास्तव में वैसे के वैसे पालन कियेजा रहे हैं|” … ओशो रजनीश. Book Title: The Last Testament, Vol. 2.       //  Chapter 6: The Intelligent Way
मनुस्मृति का इतिहास
कहने वाले कहते हैं कि आज मनुस्मृति को कौन जानता और मानता है, इसलिए अब मनु स्मृति पर हाथ धो कर पड़ने से क्या फायदा- यह एक मरे हुए सांप को मारना है. हमारा कहना है कि कई सांप इतने जहरीले होते हैं कि उन्हें सिर्फ मारना ही पर्याप्त नहीं समझा जाता बल्कि उसके मृत शरीर से निकला जहर किसी को हानि न पहुंचा दे इसलिए उसे जलाना भी पड़ता है.
वैसे मनु स्मृति जैसी घटिया किताब कि तुलना बेचारे सांप से करना मुझे अच्छा नहीं लग रहा. बेचारे सांप तों यूँ ही बदनाम हैं, और अधिकाँश तों यूँ ही मार दिए जाते हैं. फिर भी सांप के काटने से एकाध आदमी ही मरता हैं जबकि मनु स्मृति जैसे ग्रन्थ तों दीर्घकाल तक पूरे समाज को डस लेते हैं. क्या ऐसे कृतियों की अंत्येष्टि यथासंभव किया जाना अनिवार्य नहीं हैं?

Monday, 26 March 2018

SC/ST ACT के बारे में


SC/ST एट्रोसिटी एक्ट कानून (गांव में लोग हरिजन एक्ट के नाम से जानते हैं ) उसको प्रभावहीन और कमजोर करने की साजिश पर सुप्रीम कोर्ट के वकील एडवोकेट आर0 आर0 बाग़ जी की लेखनी से ये कानूनी विश्लेषण प्रस्तुत हैबहुजनों जानो कैसे आपके पैरों तले जमीन खिसक रही है, ऐसे कानून बन रहे हैं की अब न आपका आरक्षण बचा ,न ही अब आपको बचाने वाला कोई कानून बचा है , सब तरफ प्राइवेटजेशन मतलब ब्राह्मणवादियों को मलिक बनाया जा रहा है आपको आपकी गुलामी की शुरुआत मुबारक हो।टाइम्स ऑफ़ इंडिया की 21-mar-2018 की फ्रंट पेज की खबर है की SC/ST एक्ट में माननीय न्यायलय ने जिस प्रकार से परिवर्तन किये है उससे अब SC/ST पर जुल्म करने वालों की गिरफ़्तारी नहीं होगी मतलब उनका हौसला और बढ़ जाएगा , पर आपको क्या आप तब तक इन बातों को नहीं समझोगे की जब तक खुद नहीं पीटेंगे/मरेंगे ,आप तो मन्दिरबाजी पूजा पाठ मौज मस्ती जारी रखो ।

SC/ST एक्ट में माननीय न्यायलय ने जिस प्रकार से परिवर्तन किये है उससे अब SC/ST पर जुल्म करने वालों की गिरफ़्तारी नहीं होगी मतलब उनका हौसला और बढ़ जाएगा|सुप्रीम कोर्ट कि  इस आदेश के बाद पिछड़ों के साथ दलित और आदिवासी को जातीय संघर्ष कराने में देशद्रोही दंगेबाज जातीवादियों को  बहुत मदद मिलेगी..
मेरा मानना है कि यह बहुत बड़ी साजिश चल रही है देश में l जो काम राजनीतिक पार्टी नहीं कर सकती वह मीडिया और जुडिशरी के माध्यम से न्यायपालिका के माध्यम से कराई जा रही है l सुप्रीम कोर्ट का आज एससी एसटी एक्ट के ऊपर जो जजमेंट आई है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भविष्य में आदिवासी और दलितों के ऊपर  कत्लेआम बढ़ेगी और जो दलित और आदिवासी ऑफिसर होंगे उनके ऊपर डिसिप्लिनरी एक्शन बढ़ेगा क्योंकि कोई रोक-टोक नहीं है !!
हालांकि अदालत का इरादा स्पष्ट रूप से अधिकारियों को “मनमानी गिरफ्तारी” से बचाने के लिए और “निर्दोष नागरिकों” को मामलों में झूठा फंसाया जाने से बचाने के लिए स्पष्ट रूप से था, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और गृह मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि अगर सजा इस अधिनियम के तहत दरें कम हैं, इस तरह के प्रावधान के दुरुपयोग के साथ ऐसा किया जा सकता है कि जिस तरह से जांच की जाती है और अदालतों में मुकदमे चलने वाले मामलों के साथ।

‘बिना किसी गिरफ्तारी की अनुमति’
अपने आदेश में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि सरकारी कर्मचारियों को उनके नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित अनुमति के साथ ही गिरफ्तार किया जा सकता है। निजी कर्मचारियों के मामले में, उसने कहा था, संबंधित वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को इसे अनुमति देना होगा।
यह देखा गया था कि सार्वजनिक प्रशासन अधिनियम के दुरुपयोग से सावधान थे और अधिकारियों को कर्मचारियों के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणियां देना मुश्किल हो पाया था कि इस अधिनियम के तहत आरोप उनके खिलाफ लाए जा सकते हैं।
जैसे, सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना कि प्राथमिकी दर्ज करने से पहले एक प्रारंभिक जांच भी की जानी चाहिए कि मामला अत्याचार अधिनियम के मापदंडों के भीतर आता है या नहीं, यह मामूली या प्रेरित था या नहीं। अदालत ने यह भी माना था कि अगर अग्रिम जमानत की अनुमति दी जानी चाहिए तो आरोपी यह साबित करने में सक्षम है कि शिकायत दुर्भावनापूर्ण थी।
जातिवाद पर टिप्पणी
अदालत ने इस अवसर पर जोर देने का अवसर भी इस्तेमाल किया था कि यह कैसे महसूस करता है कि यह कानून “जातिवाद को सशक्त बनाएगा” और “जातिवाद पर निर्दोष नागरिकों के झूठे निषेध” को रोकने की आवश्यकता कैसे हो सकती है।
हालांकि, जो लोग अधिनियम के तहत कठोर मानदंडों की मांग कर रहे हैं, उनका कहना है कि इसके तहत कम अभिरक्षा दर वास्तव में इस बात पर प्रतिबिंब है कि मामले कैसे पंजीकृत हैं और पीछा करते हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट “हिडन अपैथीड: कास्ट डिस्रिमिनेशन विद इंडिया के ‘अस्पृश्यता’ नामक एक रिपोर्ट ने नोट किया था कि” दलित अक्सर न्याय के प्रशासन में भेदभावपूर्ण उपचार के शिकार होते हैं। अभियोजक और न्यायाधीश सख्ती से विफल रहते हैं और दलितों द्वारा लाए गए शिकायतों का विश्वासपूर्वक पालन करते हैं, जो इस तरह के मामलों में उच्चतम दर से निष्कासित होता है “।
यह ध्यान देने के साथ कि पुलिस आम तौर पर “दलितों के खिलाफ अपराधों को पंजीकृत या ठीक से पंजीकृत करने में असफल” थे, उन्होंने नोट किया था कि “न्याय के प्रशासन के अंगों से पहले दलितों के समान इलाज करने का अधिकार शुरू में समझौता हुआ है”।
इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली ने एक और अध्ययन में कहा था कि अधिनियम के तहत दायर 50% मामले अदालत में नहीं जाते हैं और पुलिस द्वारा बंद कर दिया जाता है। यह भी कहा गया था कि “जांच अधिकारियों के बीच जाति के पूर्वाग्रह” होने के चलते
नए संशोधनों में सख्त प्रावधानों की आवश्यकता दिखाई गई
वास्तव में, गृह मंत्रालय ने 2017 में अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह नोट किया था कि “पीओए अधिनियम में किए गए निवारक प्रावधानों के बावजूद, अनुसूचित जातियों और एसटी के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार बढ़ाना सरकार के लिए चिंता का कारण था”। गृह मंत्रालय ने कहा था, “इसलिए, इस अधिनियम को मजबूत करने और अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए उचित माना गया था।”
इसके बाद, यह उल्लेख किया गया था कि पीओए कानून के मौजूदा वर्गों के पुन: वाक्यांश के लिए और संस्थागत सुदृढ़ीकरण, अपील (एक नया खंड) से संबंधित अनुमानों का विस्तार करने के लिए, पीड़ितों और गवाह (एक नया अध्याय) और मजबूत बनाने के अधिकारों की स्थापना अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन विधेयक, 2015 को लोकसभा ने 4 अगस्त 2015 को और राज्यसभा द्वारा 21 दिसंबर, 2015 को पारित कर दिया था। यह अधिनियम 26 जनवरी, 2016।
अधिकारियों के खिलाफ शिकायतें आम तौर पर “अन्य आईपीसी अपराधों” के अधीन आती हैं
एससी / एसटी (पीओए) अधिनियम के खिलाफ एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, 2017 की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है कि 2014 में मामलों की संख्या 40,401 थी, लेकिन वे 2015 में मामूली रूप से 4.3% की गिरावट के साथ 38,670 पर बंद हुए, लेकिन बढ़ी 2016 में 40.801 तक पहुंचने के लिए 5.5% की वृद्धि हुई थी। इसमें “अन्य आईपीसी अपराधों” के तहत अधिकारियों और कर्मचारियों के सदस्यों के खिलाफ शिकायतों में अधिकतर शिकायतों को शामिल किया गया था, जो दुरुपयोग और आपराधिक धमकी से संबंधित वर्गों को शामिल किया था।
2016 में, उत्तर प्रदेश (10,426 मामले) में अनुसूचित जातियों (एससी) के खिलाफ अत्याचार के मामले दर्ज किए गए, जिनमें कुल 25.6% के लिए बिहार था, बिहार के बाद 14.0% (5,701 मामले) और राजस्थान में 12.6% (5,134 मामले) थे 2016।
संयोग से, अपराध सिर-वार तिथि से पता चला है कि इन मामलों का सबसे बड़ा अनुपात महिलाओं के लिए 7.7% (3172 मामले) में बलात्कार के साथ-साथ 6.2% (2,541 मामलों) पर बलात्कार के आक्रोश के साथ महिलाओं पर हमला था।
अनुसूचित जनजातियों के मामले में, 2014 में 6,827 मामलों की संख्या दर्ज की गई, 2015 में 6,276 तक पहुंचने के लिए 8.1% की गिरावट आई, और फिर 2016 में 4.7% बढ़कर 6,568 हो गई। एसटी के मामले में, मध्य प्रदेश (1823 मामले) 27.8% पर अत्याचारों के मामले में सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई, इसके बाद राजस्थान में 18.2% (11 9 मामले) और ओडिशा में 10.4% (681 मामले) दर्ज किए गए।
एसटीएस के मामले में, 9 74 बलात्कार के मामले सामने आए जिनमें से 14.8% उनके खिलाफ अपराध थे, इसके बाद 12.7% (835 मामले) और 2.5% (163 मामले) के अपहरण और अपहरण के मामले में महिलाओं पर हमला करने के इरादे से महिलाओं पर हमला किया गया था। ।
आरोपपत्र दर 77%, सजा दर 15.4%
पुलिस और अदालतों के मामलों के निपटान से पता चला है कि 1 9 8 9 के तहत, 2016 में जांच के लिए 11,060 मामले सामने आए और आरोप पत्र की दर 77% थी।
आंकड़ों के मुताबिक यह भी कहा गया है कि 2016 में, एससी / एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1 99 8 के तहत पिछले वर्ष से 45233 मामले लंबित थे, जबकि 5124 मामले में परीक्षण के लिए भेजा गया था जिसके परिणामस्वरूप कुल 50,357 वर्ष के दौरान मामलों हालांकि सरकार द्वारा कोई भी मामलों को वापस नहीं लिया गया था और कोई भी मामला याचिका सौदेबाजी द्वारा नहीं सुलझाया गया था, 49 मामले जटिल थे।
वर्ष 4546 के मामलों में, परीक्षण पूरा हो गया था। जबकि 701 मामलों में दोषी पाए गए, 3845 में आरोपी को निर्दोष या छुट्टी दे दी गई। इसलिए सजा की दर 15.4% थी, जबकि लंबित प्रतिशत 90.5% पर था।
पुलिस को कई मामलों में ‘गलत’, ‘गलती की तथ्य’
वर्ष के दौरान पुलिस द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट में पता चला कि पुलिस को 2150 मामलों को “सच है लेकिन (के साथ) अपर्याप्त साक्ष्य”, 5,347 मामले “झूठे” होने और 869 मामले “तथ्य की गलती” होने के लिए मिलते हैं।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक भारत में अनुसूचित जाति की कुल जनसंख्या 20.13 करोड़ थी। इसमें कहा गया है कि अत्याचारों में गैर अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति द्वारा अनुसूचित जाति के खिलाफ किए गए अपराधों का उल्लेख है और यह कि केवल भारतीय दंड संहिता (एससी / एसटी अधिनियम के बिना) के आंकड़ों के दायरे से बाहर रखा गया है, क्योंकि वे एससी / एसटी ।
हालांकि, अतीत में कुछ अध्ययनों ने पुलिस को मामलों पर ठीक से दर्ज करने या जांच करने के आरोपों का आरोप लगाया है, एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 में पिछले साल की जांच लंबित मामलों 15498 पर थी, वर्ष के दौरान दर्ज मामलों 40801 थे और इसलिए जांच के लिए कुल मामलों 56,29 9 थे इसमें से कहा गया है कि सरकार द्वारा वापस ले जाने वाले 16 मामले, 40 अन्य पुलिस स्टेशनों या मजिस्ट्रेट को हस्तांतरित किए गए थे और छह को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 157 (1) (बी) के तहत जांच नहीं हुई थी।
जय भीम जय भारत 

Sunday, 25 March 2018

मनुस्मृति क्यों जलाई गई

जय भीम जय भारत
जिस महापुरुष ने अपने ग्रंथों को रखने के लिए ‘राजगृह’ जैसा विशाल भवन बनवाया था, उसी ने २५ दिसंबर १९२७ के दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?

जिस महापुरुष के पास लगभग तीस हज़ार से भी अधिक मूल्य की निजी पुस्तकें थीं, उसी ने एक दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?

जिस महापुरुष का पुस्तक-प्रेम संसार के अनेक विद्वानों के लिए नहीं, अनेक पुस्तक-प्रकाशकों और विक्रेताओं तक के लिए आश्चर्य का विषय था, उसी ने एक दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?

उस पुस्तक का नाम क्या था?

उसका नाम था ‘मनु-स्मृति’. आइये हम जाने कि वह क्यों जलाई गयी?

इस पुस्तक में ऐसा हलाहल विष भरा है कि जिसके चलते इस देश में कभी राष्ट्रीय एकीकरण का पौधा कभी पुष्पित और पल्लवित नहीं हो सकता!

वैसे तों इस पुस्तक में सृष्टि की उत्पत्ति की जानकारी भी दी गयी है लेकिन असलियत यह सब अज्ञानी मन के तुतलाने से अधिक कुछ भी नहीं हैं.

जाने मनुस्मृति का इतिहास

स्त्री और शूद्र विरोधी कथित धार्मिक पुस्तक मनुस्मृति 25 दिसंबर को देशभर में जलाई गई। ब्राह्मणवाद-मनुवाद हो बर्बाद! बाबा साहब डाक्टर भीमराव आंबेडकर का ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष जिंदाबाद!! नारों के साथ भागलपुर स्टेशन चौंक पर न्याय मंच, जनसंसद एवं बिहार प्रदेश दलित-युवा संघ ने मनुस्मृति जलायी। उक्त अवसर पर न्याय मंच के रिंकु एवं डॉ. मुकेश कुमार ने कहा कि मनुस्मृति दलितों-वंचितों और महिलाओं के शोषण को जायज ठहराने वाला विषमतावादी धर्म ग्रन्थ है। यह दलितों-शूद्रों व महिलाओं को गुलाम व गर्त में धकेलने के लिये जिम्मेदार है।


दोनों वक्ताओं ने कहा कि मनुस्मृति घृणा व विद्वेष फैलाने वाला और यथास्थितिवादी समाज का घोषणा पत्र है। यही कारण है कि बाबा साहब ने 25 दिसंबर 1927 को नासिक में मनुस्मृति को जलाते हुए बीसवीं सदी में नये सिरे से सामाजिक क्रान्ति का आगाज किया था। आज भी यह परियोजना अधूरी है, इसे पूरा करने के लिये संघर्ष को आगे बढाने की जरूरत है।

जाने मनुस्मृति और स्त्री
आज से ठीक 89 साल पहले 25 दिसंबर 1927 को बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने रात्रि के 9 बजे हिन्दू भारत का तानाबाना बुनने वाली मनुस्मृति-मनु के कानून के दहन संस्कार का नेतृत्व किया था। इसीलिए 25 दिसंबर को 'मनुस्मृति दहन दिवस'  के रूप में भी मनाया जाता है, जिसे स्त्रीवादियों का एक समूह ' भारतीय महिला दिवस'  के रूप में मनाने का आग्रह भी रखता रहा है।

उस इतिहास निर्मात्री क्रिसमस की रात सभी कार्यकर्ताओं ने पांच संकल्प लिए गए-

1. मैं जन्म-आधारित चतुर्वर्ण में विश्वास नहीं रखता।
2. मैं जातिगत भेदभाव में विश्वास नहीं रखता।
3. मैं विश्वास करता हूं की अछूत प्रथा, हिन्दू धर्म का कलंक है और मैं अपनी पूरी ईमानदारी और क्षमता से उसे समूल नष्ट करने की कोशिश करूंगा।
4. यह मानते हुए की कोई छोटा-बड़ा नहीं है, मैं खानपान के मामले में, कम से कम हिन्दुओं के बीच, किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करूंगा।
5. मैं विश्वास करता हूँ की मंदिरों, पानी के स़्त्रोतों, स्कूलों और अन्य सुविधाओं पर बराबर का अधिकार है।

छ: लोगों ने दो दिन की मेहनत से सभा के लिए पंडाल बनाया था। पंडाल के नीचे गडढा खोदा गया था, जिसकी गहराई छह इंच थी और लम्बाई व चौड़ाई डेढ़-डेढ़ फीट। इसमें चंदन की लकड़ी के टुकड़े भरे हुए थे। गड्ढे के चारों कोनों पर खंभे गाड़े गए थे। तीन ओर बैनर टंगे थे। क्रिसमस कार्ड की तरह झूल रहे इन बैनरों पर लिखा था-

– मनुस्मृति दहन भूमि।
– ब्राहम्णवाद को दफनाओ।
– छुआछूत को नष्ट करो।

धन्यवाद

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Saturday, 17 March 2018

जय भीम जय भारत

महामानव महान सामाजिक क्रांतिकारी ज्योतिराव फुले का कहना था, अंग्रेजों और मुसलमानों ने तो हमारे शरीर को ही गुलाम बनाया परन्तु ब्राह्मणों ने तो हमारी चेतना को ही गुलाम बना डाला ।
फिर भी हम मन्दिर में जाये  आखिर ऐसा क्यों

मनु स्मृति की इतने बढ़-चढ कर ज्ञान की डींगे बघारी गयी है उसका असली उद्देश्य जातिवाद का निर्माण और स्त्री को निंदनीय तथा निम्न बताना भर है. इसमे निहित आदेश निर्लज्जता से ब्राह्मणों के हित में हैं.
ऐसे ब्राह्मणों को गोली मारो
कहने वाले तो कहते हैं कि मनुस्मृति और उसकी आज्ञाएं कब कि मर चुकी हैं, अब गड़े मुर्दे उखाडने से क्या फायदा?

प्रश्न है कि डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर ने आखिर यही पुस्तक क्यों जलाई?

इसका उत्तर साफ़ है कि जिस कारण महात्मा गाँधी ने अनगिनत विदेशी कपड़े जलवाये थे. धर्मशास्त्र माने जाने वाले इस कुकृत्य को नष्ट करने के लिए क्या इसे जलाना अनिवार्य नहीं था?

कहने वाले कहते हैं कि आज मनुस्मृति को कौन जानता और मानता है, इसलिए अब मनु स्मृति पर हाथ धो कर पड़ने से क्या फायदा- यह एक मरे हुए सांप को मारना है. हमारा कहना है कि कई सांप इतने जहरीले होते हैं कि उन्हें सिर्फ मारना ही पर्याप्त नहीं समझा जाता बल्कि उसके मृत शरीर से निकला जहर किसी को हानि न पहुंचा दे इसलिए उसे जलाना भी पड़ता है.

हम भारत के मूलनिवासी लोग -हमारा एक ही धर्म है -'इंसानियत', हमारा एक ही मंदिर है 'संसद', हमारा एक ही भगवान है -'न्याय' ,हमारी एक ही धार्मिक किताब है – 'अम्बेडकर संविधान' , 'शिक्षा' ही हमारी हथियार है , 'संगठन' ही हमारा सत्संग है , और 'संगर्ष' हो हमारी पूजा है , 'राजनीती' ही हमारा लोक परलोक
जय भीम जय भारत
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मनुस्मृति का इतिहास

देखिये मनुस्मुर्ति" में क्या कहा हैं ये तो  भला हो बाबा  साहब  का
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यह देखिये-
- पुत्री,पत्नी,माता या कन्या,युवा,व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. -मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक.

- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५

- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६.

- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं....तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-"ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी."
- मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९

 असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८.

 स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-"नारी नर्क का द्वार") - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ .

- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ .

- मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली - अध्याय-२ श्लोक-२१४ .
- स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४
 - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५.

. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४.

स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५.
.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७.

- सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं-
. स्त्रीओ को जीवन भर पति की आग्या का पालन करना चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५.

. पति सदाचारहीन हो,अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४.

जो इस प्रकार के उपर के ये प्रावधान वाले पाशविक रीति-नीति के विधान वाले पोस्टर क्यो नही छपवाये?

वर्णानुसार करने के कार्यः -

- महातेजस्वी ब्रह्मा ने स्रुष्टी की रचना के लिए ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र को भिन्न-भिन्न कर्म करने को तै किया हैं -

- पढ्ना,पढाना,यग्य करना-कराना,दान लेना यह सब ब्राह्मण को कर्म करना हैं. अध्यायः१:श्लोक:८७

- प्रजा रक्षण , दान देना, यग्य करना, पढ्ना...यह सब क्षत्रिय को करने के कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:८९

- पशु-पालन , दान देना,यग्य करना, पढ्ना,सुद(ब्याज) लेना यह वैश्य को करने का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९०.

- द्वेष-भावना रहित, आंनदित होकर उपर्युक्त तीनो-वर्गो की नि:स्वार्थ सेवा करना, यह शूद्र का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक

 प्रत्येक वर्ण की व्यक्तिओके नाम कैसे हो?:-

- ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक - उदा. शर्मा या शंकर
- क्षत्रिय का नाम शक्ति सूचक - उदा. सिंह
- वैश्य का नाम धनवाचक पुष्टियुक्त - उदा. शाह
- शूद्र का नाम निंदित या दास शब्द युक्त - उदा. मणिदास,देवीदास
- अध्यायः२:श्लोक:३१-३२.

 आचमन के लिए लेनेवाला जल:-

- ब्राह्मण को ह्रदय तक पहुचे उतना.
- क्षत्रिय को कंठ तक पहुचे उतना.
- वैश्य को मुहं में फ़ैले उतना.
- शूद्र को होठ भीग जाये उतना, आचमन लेना चाहिए.
- अध्यायः२:श्लोक:६२.

 व्यक्ति सामने मिले तो क्या पूछे?:-
- ब्राह्मण को कुशल विषयक पूछे.
- क्षत्रिय को स्वाश्थ्य विषयक पूछे.
- वैश्य को क्षेम विषयक पूछे.
- शूद्र को आरोग्य विषयक पूछे.
- अध्यायः२:श्लोक:१२७.
वर्ण की श्रेष्ठा का अंकन :-
- ब्राह्मण को विद्या से.
- क्षत्रिय को बल से.
- वैश्य को धन से.
- शूद्र को जन्म से ही श्रेष्ठ मानना.(यानी वह जन्म से ही शूद्र हैं)
- अध्यायः२:श्लोक:१५५.

विवाह के लिए कन्या का चयन:-
- ब्राह्मण सभी चार वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- क्षत्रिय - ब्राह्मण कन्या को छोडकर सभी तीनो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- वैश्य - वैश्य की और शूद्र की ऎसे दो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
- शूद्र को शूद्र वर्ण की ही कन्याये विवाह के लिए पंसद कर सकता हैं.- (अध्यायः३:श्लोक:१३) यानी शूद्र को ही वर्ण से बाहर अन्य वर्ण की कन्या से विवाह नही कर सकता.

 अतिथि विषयक:-
- ब्राह्मण के घर केवल ब्राह्मण ही अतिथि गीना जाता हैं,(और वर्ण की व्यक्ति नही)
- क्षत्रिय के घर ब्राह्मण और क्षत्रिय ही ऎसे दो ही अतिथि गीने जाते थे.
- वैश्य के घर ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य तीनो द्विज अतिथि हो सकते हैं, लेकिन ...

- शूद्र के घर केवल शूद्र ही अतिथि कहेलवाता हैं - (अध्यायः३:श्लोक:११०) और कोइ वर्ण का आ नही सकता...

पके हुए अन्न का स्वरुप:-

- ब्राह्मण के घर का अन्न अम्रुतमय.
- क्षत्रिय के घर का अन्न पय(दुग्ध) रुप.
- वैश्य के घर का अन्न जो है यानी अन्नरुप में.
- शूद्र के घर का अन्न रक्तस्वरुप हैं यानी वह खाने योग्य ही नही हैं.
(अध्यायः४:श्लोक:१४)

 शब को कौन से द्वार से ले जाए? :-
- ब्राह्मण के शव को नगर के पूर्व द्वार से ले जाए.
- क्षत्रिय के शव को नगर के उतर द्वार से ले जाए.
- वैश्य के शव को पश्र्चिम द्वार से ले जाए.
- शूद्र के शव को दक्षिण द्वार से ले जाए.
(अध्यायः५:श्लोक:९२)

 किस के सौगंध लेने चाहिए?:-
- ब्राह्मण को सत्य के.
- क्षत्रिय वाहन के.
- वैश्य को गाय, व्यापार या सुवर्ण के.
- शूद्र को अपने पापो के सोगन्ध दिलवाने चाहिए.
(अध्यायः८:श्लोक:११३)

महिलाओ के साथ गैरकानूनी संभोग करने हेतू:-
- ब्राह्मण अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो सिर पे मुंडन करे.
- क्षत्रिय अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो १००० भी दंड करे.
- वैश्य अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये और १ साल के लिए कैद और बाद में देश निष्कासित.
- शूद्र अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये , उसका लिंग काट लिआ जाये.
- शूद्र अगर द्विज-जाती के साथ अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसका एक अंग काटके उसकी हत्या कर दे.
(अध्यायः८:श्लोक:३७४,३७५,३७
९)
 हत्या के अपराध में कोन सी कार्यवाही हो?:-
- ब्राह्मण की हत्या यानी ब्रह्महत्या महापाप.(ब्रह्महत्या करने वालो को उसके पाप से कभी मुक्ति नही मिलती)
- क्षत्रिय की हत्या करने से ब्रह्महत्या का चौथे हिस्से का पाप लगता हैं.
- वैश्य की हत्या करने से ब्रह्महत्या का आठ्वे हिस्से का पाप लगता हैं.

- शूद्र की हत्या करने से ब्रह्महत्या का सोलह्वे हिस्से का पाप लगता हैं.(यानी शूद्र की जिन्दगी बहोत सस्ती हैं)
- (अध्यायः११:श्लोक:१२६)...
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