Friday, 18 May 2018

“खुद में विश्वास रखना कोई धर्म नहीं है... यह जीवन की राह है.” बुद्ध ने यह बात बरसों पहले कही थी जो आज भी सही है. ऐसी ढेर सारी बातें आपने बुद्ध के बारे में ज़रूर पढ़ी होंगी. महात्मा बनने से पहले बुद्ध एक राजा थे. वो बचपन से ही ऐसे प्रश्नों के उत्तर की तलाश में खोए रहते थे जिनका जवाब बड़े-बड़े संत और महात्माओं के पास भी नहीं था. बुद्ध विवाह के बाद ही अपने परिवार को छोड़कर सत्य की तालाश में निकल पड़े थे. आज बौद्ध धर्म को 40 करोड़ से अधिक लोग मानते हैं और यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है. बुद्ध के द्वारा कही गई बातें आज भी लोगों का मार्गदर्शन कर रही हैं.
बुद्धत्व प्राप्ति से पहले गौतम के समस्त चिंतन के केन्द्र में भी जन्म और मृत्यु का यही रहस्य जान लेने की उत्कंठा थी. लेकिन दुख के इस कुचक्र से छूट निकलने की बेचैनी थी. हालांकि  भारत की अति-प्राचीन ज्ञान परंपरा में जन्म और मृत्यु पर पहले से ही अथाह चिंतन होता चला आ रहा था लेकिन बुद्ध ने उस चिंतन को अपनी आत्म-साधना और आत्मानुभूति की कसौटी पर कसने की कोशिश करी. किसी भी विचार को सत्य मानने से पहले उसे इस कसौटी पर कसने की परंपरा यहां पहले भी कीथी. तैत्तिरीय उपनिषद् का ऋषि अपने शिष्यों से कह चुका था - ‘यान्यनवद्यानि कर्माणि. तानि सेवितव्यानि. नो इतराणि. यान्यस्माकं सुचरितानि. तानि त्वयोपास्यानि...’ यानी हमने जो तुम्हें शिक्षा दी उसे ही पूरी तरह अनुकरणीय सत्य नहीं मान लेना. उसे अपने विवेक की कसौटी पर कसना. फिर तय करना कि यह अनुकरणीय है या नहीं.उस पर लग्न से गौर करना

बुद्ध ने बौद्ध धर्म के लिए कहीं भी नकारात्मक भाषा का इस्तेमाल नहीं किया. अपना पंथ चलाने के लिए  स्वयं कोई अतिरिक्त राजनीतिक प्रयास नहीं किया. अप्रिय भाव में किसी वेद-उपनिषद् पर कोई तात्विक टिप्पणी नहीं की. एक बुद्ध हो चुका व्यक्ति जिसके हृदय में करुणा की अनंत धारा बह रही हो, वह किसी खंडन-मंडन में नहीं उलझेगा. वह सप्रयास और रणनीतिक रूप से तो ऐसा हरगिज नहीं करेगा. वे तो बस अपने धर्मबोध की आनंदलहर में मौन होकर विचरण करने लगे थे. समर्थ रामदास ने इस बारे में कहा- ‘कलि लागि झाला असे बुद्ध मौनी’ (यानी घोर कलियुग था इसलिए बुद्ध मौन हो गए).सत्य वचन

जाने मनुस्मृति क्यों जलाई गई
बुद्ध ने आत्मा और ब्रह्म पर कोई शास्त्रार्थ या बहस नहीं की. वे प्रायः ध्यानमग्न रहते और मौन रहते. कोई कुछ पूछता तो कारुणिक स्वर में उनके मुंह से धर्म की उनकी स्वयं की अनुभूतियां ही निकलतीं. और वह भी ऐसे शीतल सूत्रवाक्य के रूप में जैसे कि वे प्यासे को पानी पिलाने का प्रयास कर रहे हैं उनका स्वर और उनके शब्द ऐसे होते, जैसे वे भयावह पीड़ा झेल रहे किसी रोगी को दवा देना चाहते हो. उनके लिए न कोई जन्म से ब्राह्मण रह गया था, न वेश-भूषा से श्रमण. राजा या रंक जो सामने आता उसे वे समदर्शी की तरह एक ही दृष्टि से देखते और बरतते.
यही उनका जीवन रहा

मनुस्मृति का इतिहास
पहला जन्म तो मां के गर्भ से ही होता है. इसी से जुड़ी घटना है कि भगवान बुद्ध की माता महामाया उन्हें जन्म देने के सातवें दिन ही चल बसी थीं. पिता शुद्धोधन की दूसरी पत्नी और महामाया की छोटी बहन महाप्रजापति गौतमी ने ही बुद्ध को पाल पोषण किया




महात्मा बुद्ध ने कहा कि अपना रास्ता स्वंय बनाएं – हम अकेले पैदा होते हैं और अकेले मृत्यु को प्राप्त होते हैं, इसलिए हमारे अलावा कोई और हमारी किस्मत का फैसला नहीं कर सकता।

आप पूरे ब्रह्माण्ड में कहीं भी ऐसे व्यक्ति को खोज लें जो आपको आपसे ज्यादा प्यार करता हो, आप पाएंगे कि जितना प्यार आप खुद से कर सकते हैं उतना कोई आपसे नहीं कर सकता ।

बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर की जीवनी
हजारों लड़ाइयाँ जितने से बेहतर है कि आप खुद को जीत लें, फिर वो जीत आपकी होगी जिसे कोई आपसे नहीं छीन सकता ना कोई स्वर्गदूत और ना कोई राक्षस ना कोई और


सावधानी बरतने के बावजूद यदि ऊपर दिए गए किसी भी वाक्य या Quote में आपको कोई त्रुटि मिले तो कृपया क्षमा करें और comments के माध्यम से अवगत कराएं।

No comments:

Post a Comment